साहित्य - शिक्षा | Saahity Shiqsa
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
240
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
पदुमलाल बक्शी- Padumlal Bakshi
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हेमचन्द्र मोदी - Hemchandra Modi
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)इसी ढंगसे क्षुद्रन अपना जीवन सम्मव बनाया |
किन्तु, जीवनकी इस सम्भावनामें ही विराटू ओर श्रुद्र, अनन्त
ओर समीपका अभेद सम्पन्न होता दीखा | वह अमेद यह है,--जो
कुछ है वह क्षुद्र नहीं है पर विराटका ही अंश है, उसका बालक
हे, अतः स्वयं विराट् है ।
धूप चमकी, तो बृक्षने मनुष्यसे कहा, ' मेरी छायामें रा जाग्र, '
बादलोंस पानी वरसा तो पव्रतने कंदरामे सूखा स्थल प्रस्तुत किया
ओर मानो कहा, ‹ डरो मत, यह मेरी गोद् तो हे । › प्यास लगी तो
भरनेके जलने अपनेको पेश किया ।ै मनुष्यका चित्त खिन्न हुआ
ओर सामने अपनी टहनीपरसे खिले गुलाबने कहा, “ भाई, मुझे
देखो, दुनिया खिलनेके लिए ह। ' सॉमकी बेलामें मनुष्यको कुछ
भीनी-सी याद आई, ओर आमके पेड़्परसे कोयल बोल उठी,
४ कू-ऊ, कू-ऊ | * मिट्टीने कहा * मुझे खोदकर, ठोक-पीटकर, घर
बनाओ, में तुम्हारी रक्षा करूँगी। * धूपने कहा, ‹ सर्दी लगेगी तो
सेवाके लिए भें हूँ। पानी खिलखिलाता बोला, “ घबड़ाओ मत, मुममें
नहाओगे तो हरे हो जाओगे | ›
मनुष्य-प्राणीने देखा--दुनिया है, पर वह सत्र उसके साथ है ।
फिर भी, धूपको वह सम न सका । वषकि जलको, मिदट्रीको,
फलको,--किसीको भी वह पूरी तरह समझ न सका । क्या वे सब
आत्म-समपणके लिए तेयार नहीं हं १ पर, उस श्षुद्रने अहंकारके
साथ कहा, “ ठहरो, में तुम सबको देख छूँगा । में * में ' हूँ, ओर
में जीऊँगा। '
इस प्रकार अहंकारकी टेक बनाकर, अपनेको क्षुद्र और सबसे
अलग करके वह जीने लगा | अथोत् , सब प्रकारकी समस्याएँ खड़ी
र
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