साहित्य - शिक्षा | Saahity Shiqsa

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Saahity Shiqsa by पदुमलाल बक्शी- Padumlal Bakshiहेमचन्द्र मोदी - Hemchandra Modi

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पदुमलाल बक्शी- Padumlal Bakshi

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हेमचन्द्र मोदी - Hemchandra Modi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इसी ढंगसे क्षुद्रन अपना जीवन सम्मव बनाया | किन्तु, जीवनकी इस सम्भावनामें ही विराटू ओर श्रुद्र, अनन्त ओर समीपका अभेद सम्पन्न होता दीखा | वह अमेद यह है,--जो कुछ है वह क्षुद्र नहीं है पर विराटका ही अंश है, उसका बालक हे, अतः स्वयं विराट्‌ है । धूप चमकी, तो बृक्षने मनुष्यसे कहा, ' मेरी छायामें रा जाग्र, ' बादलोंस पानी वरसा तो पव्रतने कंदरामे सूखा स्थल प्रस्तुत किया ओर मानो कहा, ‹ डरो मत, यह मेरी गोद्‌ तो हे । › प्यास लगी तो भरनेके जलने अपनेको पेश किया ।ै मनुष्यका चित्त खिन्न हुआ ओर सामने अपनी टहनीपरसे खिले गुलाबने कहा, “ भाई, मुझे देखो, दुनिया खिलनेके लिए ह। ' सॉमकी बेलामें मनुष्यको कुछ भीनी-सी याद आई, ओर आमके पेड़्परसे कोयल बोल उठी, ४ कू-ऊ, कू-ऊ | * मिट्टीने कहा * मुझे खोदकर, ठोक-पीटकर, घर बनाओ, में तुम्हारी रक्षा करूँगी। * धूपने कहा, ‹ सर्दी लगेगी तो सेवाके लिए भें हूँ। पानी खिलखिलाता बोला, “ घबड़ाओ मत, मुममें नहाओगे तो हरे हो जाओगे | › मनुष्य-प्राणीने देखा--दुनिया है, पर वह सत्र उसके साथ है । फिर भी, धूपको वह सम न सका । वषकि जलको, मिदट्रीको, फलको,--किसीको भी वह पूरी तरह समझ न सका । क्‍या वे सब आत्म-समपणके लिए तेयार नहीं हं १ पर, उस श्षुद्रने अहंकारके साथ कहा, “ ठहरो, में तुम सबको देख छूँगा । में * में ' हूँ, ओर में जीऊँगा। ' इस प्रकार अहंकारकी टेक बनाकर, अपनेको क्षुद्र और सबसे अलग करके वह जीने लगा | अथोत्‌ , सब प्रकारकी समस्याएँ खड़ी र




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