परमात्मप्रकाश | Parmatamparkas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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परमात्मप्रकाश: | ९ चदे । ए्शयपनितिसं 1 খুদাকি पथभूतं सिदटसस्पं । यैवन्यानंदखभावं सोरालोक- धदपिसृश्मपधीयशुद्धष्यरूपे शानइशनोपयोगलक्षणे निश्रय एदीभूतव्यवहाराभावि হ্যানলনি সি थे मुरदुशरभावाभावयोरेदीहत्य स्पसंवेधसवस्पे स्ययम्रे तिधन्ति | उपधरितासदूत- ध्यवाहरे छोझालोकायछोफन रसदेधं प्रतिभाति आह्स्वरूपकैवल्यशानोपशम यथा पुरुफर्पदाभेद्े भवति तेर धाष्यप्तत्तिनिमित्तगुत्पत्तिस्यूलसूक्मपरपद्मा्यव्यवद्धारात्मसभेव जानन्ति 1 यदि निश्चयेन तिष्ठन्ति त पएफीयसुसदुःपपण्तिने रुग्दुःपासुभवः पाप्नोति, दरकीयरागदषुपरितिने च॒ रामद्रेपमयतवं च प्राप्नोतीति सदृदपर्ण । अग्र यत्र निश्रयेन स्यम्वरूपेडयस्थान भणित सदेवोपादेयमिति भारायेः ॥ ५ ॥ অধ निष्कटालाने मिद्धपरभेषठिने सत्रा तस्पेदानीं सिद्धस्वरूपस्य तत्माध्युपायर्य थे प्रतिपादफसकलालान ममसफरोमि;--- फेयलदंसणणाणमय, फेवलसुफ्खसहाव 1 जिणयर यंदर्ड भत्तियए, जेहिं पपासिय भाव ॥ ६॥ फेवलदर्शनशनमयाः फेवलमुखखमावाः । जिनवधान्‌ वंदे भकतया यैः प्रकारिता भावाः ॥ ६॥ पेषरदरीनदानमयाः केवटनुगयस्वभावा ये तान्‌. निनवरानदे वेदे । फया 1 भकतया । धैः # ले । प्रफाभिता भाषा जीवागीवादिपदाथौ इति । इतो विशेषः । पेवठज्ञा- मा्नेनघुष्टयम्बरूपपरमामनस्वमम्यङ्भरद्धानसानानुभूनिरूपामेदरवत्रयालके ভন” जीवितमरणलाभाटाभशध्रुमित्रसमानभावनाविनाभूतवीतरागनिर्विकरपसमाधिपूर्व जिनो- पदार्थोर्मि तन्मयी हो तो परके सुखदु.स से आप सुखी दुःखी होने ऐसा उनमें कदाचित्‌ गहीं है । व्यवह्वारनयकर स्थूलयूइम सबफो फेवलशानफर प्रत्यक्ष विःसंदेद जानते हैं किसी पदार्धसे रागद्वेष नहीं दे । यदि रामके हेतुसे किसीको जाने तो थे रागद्वेपमयी होगें यह बड़ा दूषण है इसलिये यद्द निध्यय हुआ कि निश्चयनयकर अपने खरूपगें नियास करते हैं परगें नहीं ओर अपनी ज्ञायकशक्तिकर सबक्रो म्रत्यक्ष देखते ४ जानते हैं। जो निश्चयकर अपने सरूपमें निवास कहा इसलिये बद्ध अपना खरूपही आराधमे योग्य है यह भावार्थ हुआ ॥ ५ ॥ आगे निरंजन निराकार निःशरीर तिद्ध परमेप्ठीको नमस्कार करता हं;--[ फेबलद्शनश्वानमयाः ] जो फेवलदशन और फेवलज्ञानमयी हैं [ फ्रेबलगसुसखभावाः ] तथा जिनफा फेवठ सुख द्वी खमाव है और [ वैः ] भिन्दोने [ भावाः ] जीवादिक सकल पदार्थ [ श्रकाशिता: ] प्रकाशित किये उनको मैं [ भक्तया ] भक्तिसे [ बंदे | नमस्कार रता द्धं { विशेष--केवरुशानादि अनंतचतुष्टयखरूप जो परमात्मतत्त्व है उसके यथार्थ भद्धान शान और अनुभव इन खरूप अभेदरलन्नय वद जिन* च




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