जीवन चरित्र | Jivan Chartr

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Jivan Chartr by दुधानारायण - Dudhanarayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पूर्य श्री वन्द जी महारज जीवन-बरित्र का प्रथम करण ১ हरिगीतिका मुनिराज के उपदेश से वैराग्य फा अंकुर बढ़ा । प्रग्यक्ष होने लग गया जो रह्ञ था उन पर चढ़ा ॥ संयम ग्रहण करना यद्पि तलवार की सी धार है। चिचलित नहीं होते कभी जिनका पविन्न विचार दै ॥




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