करक-दर्शनम | Karak - Darshanam

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Karak - Darshanam  by श्रीकलानाथ झा - Srikalanath Jha

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about श्रीकलानाथ झा - Srikalanath Jha

Add Infomation AboutSrikalanath Jha

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
( १६ ) प्यक्तिद था द्रष्यदिषयष्व के रूप में निर्धारित होता है कि रास कितने हैं आदि; दाशरधिपरशुरामयक्तरामादयः | छेकिन प्रइन यह है कि कब राम! शब्द के दो या तीन अर्थ हो सकते दे तो उसकी व्यत्तिवाचकता (/0८10(9009) में कोई निश्चयास्मकता कहाँ रही १ वस्तुत. जद कोर्ट शब्द घाकय में प्रयुक्त होता ई तो चाहे उसके कितने सी छर्थ क्यों न हों, प्रसेगालुकूछ टसका पुक ही সখ होगा । ष्ण शाब्द का 'वासुदैवा भौर 'काऊा' अर्थ मी तो प्रसंगानुदुछ ही निर्धारित होवा ह । इसी तरद्द जब 'रास' शब्द द्िवचन था वहुवचन मे प्रयुक्त होगा तो भप्रसंगानुदूछ उपयुक्त दो या धीन 'रामों! का थोध दो सफता दया, सदि कुछ छोगों का यह नाम हो तो उस नाम से दो था भनेक ब्यक्ति का घोध हो सच्छा है। सेरे दिचार में घूँकि एक नाम के अनेरो व्यक्तियों में भी गुणयाचकता में भेद होंगे हो, दूसस्यि ब्यक्तिवाचक संँक्षा शब्द के केव पुरुपधन में रूप होने चादविये । झाच रही कारक की यात । इृकछ्तकी प्रातिपदिकार्थ मान छेना तो अगर्थक दोगा 1 यदि कर्मकरणादि अन्म कारकत्व के माध्यम प्राठिपदिदा्थ हो सकते हैं ठो इससे स्पष्ट सिद्ध है कि स्त्र 'प्रातिपदिकार्थमात्रे' प्रथमा होगी । यष्ट भसंगव है हि ऋमशारक मे द्वितीया डी जगं प्रथमा ही । सायन्साय यह कुछ धिपदीव प्रक्रिया पूसी मालूम पड़ी £ কি অহ জগাকেনে হী জী रय प्रादिपदिकार्धसव 1 निश्चय ही कारद्र्व के टये प्रातिपदिका्थत्व भावय है, न कि धातिपदिकार्थत्द के लिये कारकरय क्योकि कारकरप साध्य है घौर भातिपदिकाधतव उसका सांघन। पहले भातिषदिकार्थरत् भाग है और तब कारकाय । पुनः थे कारक प्रातिपदिकार्भ को नियरतोपरिधठिझता पर भी खरः नहीं उतरतेदें भर्भोकि कारक एक ही गहों है। छेकिन नकन 8 भीतौ अनिश्चयास्मकता रहतों ई ? गौर से पिचार छिया लाप हो दौनों की अनिश्रयारसकता में शम्दर स्पष्ट दो लायगा | कोई হচেছ অঙ্গ সি डिसो डिक्ष में भा जाता है तव उस क्षण इसके भभ पूरो निय लौ परिपनिष्ा रहवौ ६ । रिरि चट्‌ पृ दू्य शब्द ( 101 টিন सप द १ भे चिवो, आर सो दो अल ছা লী ইন) दि मो प्रत्षय ठाह्द को दबस्तु होती है, छो इम्द को पृण्ताओं सहायक होती ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now