मेरी जीवन गाथा | Meri Jivan - Katha

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Meri Jivan - Katha by गणेशप्रसाद जी वर्णी - Ganeshprasad Ji Varni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ (९.५ ५. ५ का ৯১ रहे हैं! कोई जेन विदान्‌ गिनती करके तो देखे कि भारतके साक्सवादियोमे जन नवयुवकोकी संख्या कितनी हँ । माक्संके-भोतिङ्त- ` ` वादके चरणोपर समस्त भारतीय दकेन चटये जा रहै हं यह खतरा हम सबके सामने है । आवश्यकता इस वातकी हं कि जेन और अजेन सभी दशेनोंके वेत्ता सोक्सेवादका अध्ययत कर उसकी निस्सारता प्रकट करें । जन गुरुकुलोंसे भमावसंवादका अध्ययन और खण्डन होना चाहिए । भारतवर्षमें दार्शनिक विचारोंकी धारा सूख गयी है । उसमें प्रवाह लानेके लिए हमें योरपीय दर्शन विशेषकर साकसं वादका प्रगाढ अध्ययन करना होगा । तभी हमारे दाशेनिक विचारोंमें फिरसे मौलिकताका जन्म होगा। मसाकसंवाद बिल्कुल उथला तथा थोथा ह ! अपनी मणियोको त्िरष्कृत कर हुम काँचको ग्रहण करने আ হই हं । परन्तु हमारे नवयुवक तो पारखी नहीं ह । जबतक हम दोनोंका तुलनात्मक अध्ययन कर उनकी भूल न प्रमाणित कर देंगे तबतक वे कांचकों ही सणि समझकर ग्रहण करते जावेंगे । इसमें हमारे नवयुवकोंक़ी अपेक्षा हमारा ही अपराध अधिक हैँ । वर्णी जी ने गुरुकुलों की स्थापना करने सं महान्‌ योग दिया हे। में इन गुरुकुलों का बड़ा पक्षापाती हूँ, पर हमें इन सें आधुनिकता लाने का भी प्रयत्न करना होगा। कठिनाई यह है कि जो हमारे प्राचीन ग्रन्थों के विद्वान हं वे नयी विचारधारासे अपरिचितहं भरनो नयी विचारधारा में डूबे हुए हें वे प्राचीन साहित्य के ज्ञान से कोरे हैं। जब तक दोनों का समन्वय न होगा तब तक हमारा प्राचीन ज्ञान आज की सन्तति का उपकार न कर सकेगा । नयी धारावाले हमारे नवयुवकों की आंखें पाइचात्य विज्ञान के आविस्कारोंसे चोंधिया गयो हैं। कठिताई तो यह हैँ कि विज्ञानकी नवीन तम प्रगतिसे भी अपरिचित हैं। भारतको राजनैतिक स्वराज्य अवद्य प्राप्त हो गया है, परन्तु हमारो सानसिक गुलामी अब भी कायम, योरपमे जिस प्रकार के फनिचरका प्रचलन सौ सार पहले था और जिसे




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