स्वतंत्रता के पश्चात हिन्दी आलोचना | Swatantrata Ke Pashchat Hindi Aalochana
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
267
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मोहन राकेश
#2 2228४
अड्डे से तांगा चला तो उसम कुल तीन ही सवारियां थीं। यदि दूर से वस आती दिखाई
न दे जाती तो सावुर्सिह अभी और कु देर चौथी सवारी का इंतजार करता । परन्तु वस के
आते ही तांगे में वैठी हुई सवारियां उतर कर वस में चली जाती थीं, इसलिए वस के নই অহ
पहुंचने से पहले तांगा निकाल लेना ग्रावश्यक हो जाता था। बस के झाने से पहले सवारियां
कितनी ही उतावली मचाती रहें, वह चार सवारियां पूरी किए विना अड्डे से वाहर नहीं निकलता
या । वस कचह्री से माडल टाउन के पांच पैसे लेती थी, इसलिए तांगे भी पांच-पांच पैसे सवारी
ले कर ही जाते थे । यदि पूरी चाह सवारियां हों तो कहीं पांच आने पैसे वन पाते थे, नहीं
तो घोड़े को सवा मील दौड़ा कर भी दस या पन्द्रह पैसे ही हाथ लगते थे । आज सुबह से उसने
माडल टाउन के तीन फेरे लगाए थे, मगर अ्रभी तक उसकी जेव में पूरे सत्रह आने भी जमा नहीं
हो पाए थे। मई की चिलचिलाती धूप में घोड़े का बसे ही दम निकलने को हो रहता था, फिर
उस्ते दस-दस पैसे के लिए दौड़ाते फिरना अक्लमंदी की वात नहीं थी । मगर इसके सिवाय
चारा ही नहीं था । गर्मी में एक तो सवारी निकलती ही कम थी, और दूसरे मुकावला
वस सविस के साथ था जो कचहरी से माडल टाउन पहुंचने में पांच मिनट भी नहीं
लेती थी ।
“चल अफसरा, चल, तेरे सदके, चल ।” वह खड़ा हो कर लगाम को ही घुमाता हुआ
उससे चाबुक का काम ले रहा था । धोवी मुहल्ला पार करने तक उसे आशा थी कि शायद
रास्ते में ही कोई सवारी मिल जाए, परन्तु ड्चोढ़ियों में ऊंघती हुई दो-एक धोविनों को छोड़ कर
और सारा मुहल्ला सुनसान था । मुहल्ले से निकल कर उसने लगाम ढीली छोड़ दी और आप
वजन वरावर करने के लिए बांस पर बेठ गया ।
पीछे से वस झा रही थी, इसलिए पिछली सीट पर बैठी हुई स्त्री ज़रा तेज़ हो उठी---
“बैठते वक्त तो मिन्नत-तरला करके वैठा लेते हैं और चलाते वक्त इस तरह चलाते हैं जैसे सैर
करने के लिए निकले हों । इतनी देर लगानी थी तो हमसे पहले कह देते, हम वस में वैठ
जाते | हमारा इतना जरूरी काम है, नहीं तो हमें इतनी गर्मी में घर से निकलने की क्या
पड़ी यी !
५
तावुश्नह उचक कर वांस पर ज़रा और आग हो गया और लगाम झटकने लगा---
चल, तुझे ठण्ड पड़ें, तेरी जवानी के सदके, चला चल गोली की चाल, माई वीवी नाराज़ हो रही
खर अफत्तरा | मार दे हल्ला !/
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