चरित्र - निर्मासा | Charitra -Nirman
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
126
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ११ )
| मान होना है उसके जीवन की परिभाषा संकल्प और विकल्प करते
। रहना है, बुद्धि उसे विशेष रूप से प्रदान हुई है बुद्धि का उद्देश्य ऐसा
ज्ञान प्राप्त करना है जिससे कर्म और भोग दोनों मर्यादित हों । श्रान्त- ॥
रिक शुद्धि के लिये बुद्धि का पवित्र होना भो अनिवार्य है और बुद्धि की 1
| पवित्रता ज्ञान की पवित्रता पर श्राश्रित है। बुद्धि की पवित्रता के लिये |
~ ज्ञान पर अंकुश लगाना बहुत आवश्यक है। ईश्वर ज्ञान का श्रादि মা
| + ओ्रोत है। मनुष्य के ज्ञान का वह निमित है। जब मनुष्य ज्ञान प्राप्त (द
करते समययाज्ञान का प्रयोग करते समय ईश्वर श्र्थात् भ्रादि श्रोत | | (
को भूल जाता है तो उसका ज्ञान दूषित व अपूर्ण हो जाता है और (1
दुषितज्ञानसे ही दूषित कर्म हो जाति है, ज्ञान की पवित्रता श्रान्तरिक |
शुद्धि के लिये हर प्रकार से प्रावश्यक है । |
ईदवर संसार के सव्र पदार्थो का रचयिता श्र्थात् रचना का निमित्त |
है और गश्रादि मूल है। श्रान्तरिक शुद्धि को अस्थाई रूप देने के लिये यह |
ज आवश्यक है कि जिस प्रकार ज्ञान को प्राप्त करते या प्रयोग में लाते समय
--3 हम ईदवर को श्रादि श्रोत क रूप में अपने सम्मुख रखें उसी प्रकार कर्म |
करते समय भोग करते समय ईश्वर को भ्रादि मूल के रूप में हमें ঘন |
सम्मुख रखना अनिवार्य है। ज्ञान और कर्म जीवन के दो मुख्य और |
|
भौलिक रूप और अंग हैं। शरीर और आत्मा का सम्बन्ध ज्ञान और |
कर्म के रूप में ही दृष्टिगोचर होता है श्रौर यदि मनुष्य का ज्ञान और |
उसका कर्मं ईश्वर को भ्रादि श्रोत श्रौर रादि मूल मानकर पवित्र और ||
मर्यादित बन जावे तो आन्तरिक शुद्धि सर्वाज्भपूर्ण रूप से होगी भर |
২ इस অনা एर्ण श्रान्तरिक शुद्धि का ही नाम चरित्र निर्माण और ||
? उसकी रूप-रेखा है | ||
४--चरित्र और समाज कल्याण |
समाज कल्याण का वास्तविक स्वरूप |
' उत्तर प्रदेश की राष्ट्रीय सरकार ने समाज कल्याण के नाम से ॥
एक पृथक विभाग की स्थापना की है और यह एक बड़ा शुभ और
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