चरित्र - निर्मासा | Charitra -Nirman

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Charitra -Nirman by पूर्शचंद्र एडवोकेट - Poorshachandra Advocate

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११ ) | मान होना है उसके जीवन की परिभाषा संकल्प और विकल्प करते । रहना है, बुद्धि उसे विशेष रूप से प्रदान हुई है बुद्धि का उद्देश्य ऐसा ज्ञान प्राप्त करना है जिससे कर्म और भोग दोनों मर्यादित हों । श्रान्त- ॥ रिक शुद्धि के लिये बुद्धि का पवित्र होना भो अनिवार्य है और बुद्धि की 1 | पवित्रता ज्ञान की पवित्रता पर श्राश्रित है। बुद्धि की पवित्रता के लिये | ~ ज्ञान पर अंकुश लगाना बहुत आवश्यक है। ईश्वर ज्ञान का श्रादि মা | + ओ्रोत है। मनुष्य के ज्ञान का वह निमित है। जब मनुष्य ज्ञान प्राप्त (द करते समययाज्ञान का प्रयोग करते समय ईश्वर श्र्थात्‌ भ्रादि श्रोत | | ( को भूल जाता है तो उसका ज्ञान दूषित व अपूर्ण हो जाता है और (1 दुषितज्ञानसे ही दूषित कर्म हो जाति है, ज्ञान की पवित्रता श्रान्तरिक | शुद्धि के लिये हर प्रकार से प्रावश्यक है । | ईदवर संसार के सव्र पदार्थो का रचयिता श्र्थात्‌ रचना का निमित्त | है और गश्रादि मूल है। श्रान्तरिक शुद्धि को अस्थाई रूप देने के लिये यह | ज आवश्यक है कि जिस प्रकार ज्ञान को प्राप्त करते या प्रयोग में लाते समय --3 हम ईदवर को श्रादि श्रोत क रूप में अपने सम्मुख रखें उसी प्रकार कर्म | करते समय भोग करते समय ईश्वर को भ्रादि मूल के रूप में हमें ঘন | सम्मुख रखना अनिवार्य है। ज्ञान और कर्म जीवन के दो मुख्य और | | भौलिक रूप और अंग हैं। शरीर और आत्मा का सम्बन्ध ज्ञान और | कर्म के रूप में ही दृष्टिगोचर होता है श्रौर यदि मनुष्य का ज्ञान और | उसका कर्मं ईश्वर को भ्रादि श्रोत श्रौर रादि मूल मानकर पवित्र और || मर्यादित बन जावे तो आन्तरिक शुद्धि सर्वाज्भपूर्ण रूप से होगी भर | ২ इस অনা एर्ण श्रान्तरिक शुद्धि का ही नाम चरित्र निर्माण और || ? उसकी रूप-रेखा है | || ४--चरित्र और समाज कल्याण | समाज कल्याण का वास्तविक स्वरूप | ' उत्तर प्रदेश की राष्ट्रीय सरकार ने समाज कल्याण के नाम से ॥ एक पृथक विभाग की स्थापना की है और यह एक बड़ा शुभ और




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