बिहार में हिंदुस्तानी | Bihar Mein Hindustaani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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है এ ( ६४ ) कैः कुछ का नकल लेबें ।” ( अँगरेजी सन १८०३ साल १० आईन ५ दफा )। 'छोटे वो बड़े के पढ़ने के वासते” ही नहीं बल्कि 'अदालत' के बूझने के वास्ते भी देशी भाषा और देशी अक्षर का विधान था । अदाछत में भो देशी भाषा को स्थान मिला था-- ^मोफसील कोट अपीर के अदालत के साहेब लोग जो कागज के देसी নাউ লী অন্ত में खाह अपील के मोकदीमा खाह ओर मोकदिसा में सदर दीवानी अदालत में मेजही अगर उसके तरजमा के वासते खास हुकुम जारी नहीं हुआ रहे उनका तरजमा नही करहीगे |” ( अंगरेजी सन १८०३ साल ৬ জাহুন २९ दफा )। 'तरजमा' के बार में याद रहे कि-- “जीस बखत इंगलीसतान बादसाह वो उनके कौंसर के साहेब छोग के ক मोकदीमें ५ हजुर मे मोकदीमें का अपील सदर दीवानी अदालत के साहेब लोग मनजुर करही चाह ओ के उस मोकदीमे के बाबत के तमामी कऐदाद वो डीकरी इआ हुकुम में गवाही लोग के जबानवनदी वो दसतावेजात का दो नकल अगर देसी जवान में रहै अंगरेजी जवान मे तरजमा करणे के तैआर करावही वो उसके तैआरी के पीछे अदालत के मोहर वो रजीसटर साहेब के दसखत से जुदा जुदा इंगलीसतान बादशाह वो उनके कॉसल के साहेब लोग के हजुर से उसके भेजने के वासते जेता जलदी रवाने करने का ईतफाक होऐ नोआब गवरनर जनरल बहादुर के पास दाखील करही । ( अगरेजी सन १८०३ शाल ~+ आइन ३४ दफा )। अ्रकरत अवतरणों के आधार पर यह आसानी से कहा जा বমি सकता है कि सचमुच कंपनी सूरकार ने आरंभ में हमारी देश




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