सचित्र सिराजुद्दौला | Sachitra Sirajuddaula

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Sachitra Sirajuddaula by पं. गुलजारीलाल चतुर्वेदी - Pt. Gulzarilal Chaturvedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दूसरा परिच्छेद । > >< € ° >€; मय .के परिवत्तनसे शिश बालक, बालक युवा, न ০ 4 युवा प्रौढ़ और प्रोढ़ हद होता है। सिराज. ˆ“ र | स अब बालक नहीों है, इस समय जो कुछ वड द 25৩ 2৮18 करता ड, वह सब मणनोय है । इस समय को मनुष्य बालकालको तरह उसका उपचहास करके ओर बालका कचड्कर बात को उड़ा नहों सकता है। इस समय उसके कार्यकलाप, बातचोत और चालचलन को देखकर सभो भोत शरोर चिन्तान्वित हैं । द सिराजुदौलाने इस समय योवन-सोमामें पदापंण किया . ह; यौवन को पदलो तरङ्ग में पेर डाला हे; चित्त सौदामिनो + को गतिको तरह चञ्चल डे! यौवनकौो दारणं मादकतासे, | वद्ध दस समय, मत्तमातङ्ग को तरह मतवालाहो रहा ह! मधुलोलुप भौरे कौ तरह श्रपने भ्रापको भूला इश्राह्े) ` ` यौवन बड़ा भयङ्र समय है। यह समय मनुष्य को हिताद्दित-ज्नानसे शून्य करर टेताःडे- सुगम प्रथ होने पर भी दुर्गमपथ वता देता ह-अ दयोनेपर भो अन्धा बना देता ~ है। इस कालमें मनका वेग अति तीत्र होता है, सारो दत्तियाँ नं ना




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