आधुनिक हिंदी का स्रोत : नया चिन्तन | Adhunik Hindi Ka Srot : Naya Chintan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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७ . आधुनिक हिन्दी की विकास-परम्परा देहलवी, पठाणि भाषा, तुलुक भाषा, भाखा, भाका आदि नामों से भी यह भाषा जानी जाती रही है। यह वात ध्यान देने योग्य है कि दक्खिनी के रों साहित्यकारों में किसी एक ने भो अपनी भाषा को उर्द नाम से नहीं पुकारा । दक्रिखिनी में उपलब्ध साहित्यिक ज्रन्‍्थों के उपेक्षित होने का कारण यही है कि अरबी-फारसी लिपि में ही यह लिपिबद्ध हो गया था। लिपि की अज्ञानता की वजह से पि त फ ज्ञाना स्वाभाविक मॉप्पिला बोली में तिम्ित मलयालन का खाहित्य अरबी-मलयालम लिपि में लि = ल रहा । हिन्दीतर प्रदेश में निमित होने के कारण भी दक्डनी की ओर विद्वानों का ध्यान नहीं गया । भारतीय भाषाओं में केवल हिन्दी को ही यह सौभाग्य मिला कि उसे भारत में यत्र-तत्न-सर्वत्र फेलने का अवसर मिला। क्षेत्रीय भाषाओं के साथ रहकर साहित्य के माध्यय बनने का सौभाग्य भी हिन्दी को प्राप्त हो सका है। अरबी - फारसी लिपि में निर्मित दविखनी का त्य हिन्दी साहित्य का अभिन्न अंग ही है इस सन्दर्भ में मलयालम कीं पुरानी लिपि में लिखित हिन्दी ग्रन्धों के बारे में दो शब्द लिखना अनुचित नहीं होगा । केरल विश्वविद्यालय के प्राच्य विद्यामंदिर एवं हस्तलिखित ग्रन्थालय में उपलब्ध ताडपप्रीय भअ्रन्‍न्थों में दक्छिती हिन्दी का केरलीय रूप देखा जा सकता है। इन प्रन्‍्थों के उपलब्ध होते के बाद हम इस बात को निश्चय के साथ कह सकते हैं कि भारतीय भाषाओं में हिन्दी ही आसेतु हिमाचल व्यवहार में आई । दक्‍्खिती का क्षेत्र भी दक्षिवत तक सीमित न होकर केरल तक बढ आया है সি 4৯ दक्षिण भारत में विकसित खडीबोली का स्वरूप यह हम बता चके हैं कि गुजरात से होकर ही लोग दक्खिन की ओर आते थे। हिन्दी का प्रवेश पहले गुजरात में हुआ। ग्रुजरात में पुरानी हिन्दी के जो नशृूने मिलते हैं ती सफियों की वाणी है जिनसे उस काल की जन भाषा का परिचय पाया जा सकता है, या फिर काणथ्य के वे नमूने हैं जो शाह बाजन, काजी सहुरूद दरियाई, साह अली जीवर्गवनी आर खव मुहम्मद चिश्ती ने अभिव्यक्त किए थे ।




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