मनोहर स्तवन संग्रह | Manohar Stavan Sangrah

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Manohar Stavan Sangrah by मनोहर कंवर - Manohar Kanvar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ६ ) भाप्त किये जिनका सुचह में दु्शेत करके दस अपने को धन्य समभते हैं। उन महापुरुष को अभिमान छ भी नहीं गया था, फिर थोडो सी पूंजी पर अभिमान तथा शुमान करना कितना चुरा है। हम परमात्मा महादबीर देव के ही शिष्य हैं कौर उन्हीं से प्रार्थना करते हैं.-.हे प्रभो ! है वीतरागा सुखदाता ! दुखहर्ता हमे भी शान देकर प्रभु गौतम स्वामी सा बनाइये, हर्मे किसी भो बात का शोक न हो और हमारा जीवन परोप- कार और अच्छे कामों में व्यतीत हो । हे भाइयो ! हमें देव शुरू और धर्म की उत्तम লালিঙ্সী प्राप्त हुई है तो हमारा फत्तेव्य है कि जीव हिंसा से यर्ये और जहां खून की नदियां यह रही নতাঁ न जांय। भयंकर हिंसाओं को बन्द कराने का प्रयक्ष करे। देखिये यद्--दान देंगे, चऋह्मचरय्यें पालन करेंगे, तपस्या करेंगे, तथा पवित्र भावना भापेंगे, देवगुरु और धर्म का ध्याव लगावेंगे तो आपका जीवन सफर दोगा मौर सब सामिश्रियां मिल जार्येगी। जो पुरुष पहिले बढ़े बड़े महल तथा मकानात बनाकर छोड़ गये है उन मकानों मे आज कुत्ते भूकते हैं, उनमें उनके भूत रेगते रै उनका कुछ उपयोग नहों है भीर उन पुरुषों की कुछ गिनती नहीं है, परन्तु जिन भाग्यशाली पुरुषों ने प्रथु के मन्दिरों को यनवाया है दानशालापें खुल्वाई' हैं उनके नाम इतिहास में




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