प्राकृत भाषाओं का व्याकरण | Prakrit Bhashao Ka Vyakaran

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Prakrit Bhashao Ka Vyakaran by डॉ हेमचन्द्र जोशी Dr. Hemchandra Joshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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८ =~ जा सकता है। भारतीय परम्परा यही बताती है और नागा खले पर हेमचन्द्र ने स्वयं यह माना है। हेमचन्द्र ११४५ विक्रम सवत्‌ मे कारिक पएृरणिमा (= १०८८ याः १०८९ ई० का नवम्बर दि्नम्वर ) को अदमदावाद्‌ के निरुट भदक गाँव में पैदा हुआ। उसके मो वापयैद्य या चनियां जाति थे और दोनों ही जैन थे । उसने राजा जयसिह की इच्छा को संतुष्ट करने के लिए सपना व्याकरण लिखा । एक अच्छे दसारी की मेति आरम्भ से उसने राजा वी प्रशस्ति कही हैं, जिससे उततीस रोक ह! इमं समी चालवयो का वर्णन है, अर्थात्‌ मूल्राज़ से लेकर उसके सरक्षक जयसिह् तक की विरदावली है | जयसिह के विपय में उसने कट्दा दै-- सम्यड् निपेष्य चतुरश चतुरोप्युपायान, लिस्वोषभुज्य च जुं चततुरल्यिकाञ्छीम्‌ । विद्याचतुष्यविनीतमतिर. जिवात्मा काष्ठाम्‌ अवाप पुरुपार्थ নুরী আঃ | २४ ॥ तेनातिविस्ठतदुखमगमविधकीण-- दाव्दाजुदासनससृहकर्दार्थितेन । अभ्यर्थितों निरवर्म बिधियद्‌ ब्यधत्त शाब्दाजुशासनमिदं झुनिद्देमचन्द्र! ॥ ३५॥ अर्थात्‌ , उस चतुर ने भली भौँति अथपा पूर्णतया चार्रो उपायों ( साम, दाम, दण्ड, भेद ) का उपयोग वरफे चार्से सागरों से पिरी पृथ्वी का उपभोग विया | चार्रो वियाओं के उपाजंन से उससे मति विनीत हो गई और बह जिताध्मा बन गया और इस प्रकार चारों पुरुषाथों को ( घमम, अर्थ, काम; मोक्ष ) प्रात वर उसने सफल जीवन फी सरम सीमा प्राप्त की ॥) ३४ ॥ जो শনকানক্ষ তিন भौर नाना विये यै दाशो घौर জনাহু पायें हुए शब्दानुशासनों के देर खे पिरे, उपे ध्रायेना कने पर मुनि देगच्र ने थद गब्दानु- शासन नियमनुखार स्य दिया ॥ ३५ ॥ সমানল चरित्र के अनुसार ( इस अथ में बाईस जैन मुनियी के जीउन-चरित ६ ), जो प्रमाचंद्र मोर प्रयुम्यरि ने तेरदर्वी रदी में लिरा है; ऐमचन्द्र ने राजा घयरतसिदद से লিখন किया वि सप्र से पुराने आठ ब्यावरणों की एक एफ ग्रति मेर लिए भात्त बी লা । इनी बहुत साल की गई1 थे स्वाकरण यहीं भी एवं छोर मे शकत्र नहीं मिले । पिर पठा छगा दि ये दाप्मीर में सरशाठी के मन्दिरमे द्‌) दग इमचद्र फो संदोप हुआ। इस मझर सपा शब्दानुशासन थाचीन स्याकरणी या सार है | इस विपप की सिद््रेमचंद्र पदने से पुष्टि दी ऐोती है । फिन्य दमयं थे व्यायरण कै मूल सरी षी गोच जमी तक पूर्प सफल नहीं दुरं 2। द वरिप्रप पद्‌ य्याफएर्दकार न्यय, दमाय दष्ट क्म सह्ायन्य करता है। झदने বিল পয দক কা লী আনে পি पहले ये वैयाकर्यों का नाम नहीं छेहा 1




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