ज्ञानानंद रत्नाकर प्रारम्भ: | Gyananand Ratnakar Prarambh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
98
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)स॒ नानन्द्रस्नाङर । १४
अपणा कियाजा॥॥बइचार दशाईये पर्म न जाना दशविधि परिह मारठया। चारों
गति के चार घरसे ने अभीतक पार भया॥२॥ दशपों ग्यारह के बिन जाने गए
नि গাছ অনুর | ফি गिरा अन्नानी पाह वशुप्तहें दःख नाना बढ़के || दश
दे वा कच्य बारह पिच जाने मोह भटवें अडके | बारम गए थाने चहा ना
निन तिभृत्ति पता लड़के ॥ पावारह के भेर जिना ना तेरह विधि चारित्र लगा
चाण गाते के चार घासे ने अभी तक पार भया ॥ ३ ॥ चौदह जीव प्तप
चतदरश भागना नहीं पहिचानी | इस कारण चोदह चढाना गए स्थान भर
वधि ॥ पन्द्रह यागप्रषादन जाने तिनश्श आप्र रतिमानी | सोलह
फाण्णके तिति भार्य न कम की धिति हाथी | सन्रह नेम बिना जाने नही
पाही $िवित जीब दया चारोंगति के चार घरसे ने अभीतकू पार भगा ॥
2 ॥ दाप भगारह पढ्ित देते झरेहत नहीं हिरदय आने | इप्त तु भ्रठाह
दाप लगरह नहा अबतक हाने ॥ संन््यक्त उलत्रप पलि अब सगुझ दया से
থান | আতা গিথি मोर्दे नाशी गण आठ वरूंधर के ध्याने ॥ नाथूराप जिन
भक्त पार होने को करो धद्योग नया। चारों गतिके चार घरते न अभी तक
पार भेया | ४ |
॥ विहस्सान वीसतीथंकर की लावनी १५॥
नन 0220 2
হাছান লিন হাই ভীঘ 8 দীন सद्ाही राजत हैं | तिनका दर्शन तथा
सगर्ण विये अप॒ भाजत हूँ ॥ टेक | जम्बूद्वीप थे विदेह चत्तिप्त श्ाठश्राठ में
गक पतिश् | मदा विराजे रहै গননা को देते उपदेश | सीपंघर यभधर
स्वार्मा आह सआाह श्री परप्रेश। चार मिनेश्वर कहे पिन के पद बन्दन करा हेश ॥
धर्म चौथा बाल जा नित देव दंदू मी बाजत हैं। तिनह्ा दशोन तथा रप्ण किये
अपर भानत है ॥ १ ॥ पात ही खड द्वीप मे बिंद३ है चोपतठ अर बस जिवराण
आठ माठ मे एक नौकर लिन ই দিগাল | छुजाव और स्वये प्रश्ष ऋषमानन
अमन वीर्य महतान । गिशाज सृरी मेनू बचञ् घर चन्द्रानन राख लाग॥ छा!
लम गए ब्यव॒द्र और निश्चय अनन्त ग़ण छत हैं| तिनका दशुन तथा
দর কিন আগ पानत हैं ॥ ३॥ श्राप पुष्कर द्वीप में चाक्षठ ई নিব জি
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