ज्ञानानंद रत्नाकर प्रारम्भ: | Gyananand Ratnakar Prarambh

Gyananandratnakar by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स॒ नानन्द्रस्नाङर । १४ अपणा कियाजा॥॥बइचार दशाईये पर्म न जाना दशविधि परिह मारठया। चारों गति के चार घरसे ने अभीतक पार भया॥२॥ दशपों ग्यारह के बिन जाने गए नि গাছ অনুর | ফি गिरा अन्नानी पाह वशुप्तहें दःख नाना बढ़के || दश दे वा कच्य बारह पिच जाने मोह भटवें अडके | बारम गए थाने चहा ना निन तिभृत्ति पता लड़के ॥ पावारह के भेर जिना ना तेरह विधि चारित्र लगा चाण गाते के चार घासे ने अभी तक पार भया ॥ ३ ॥ चौदह जीव प्तप चतदरश भागना नहीं पहिचानी | इस कारण चोदह चढाना गए स्थान भर वधि ॥ पन्द्रह यागप्रषादन जाने तिनश्श आप्र रतिमानी | सोलह फाण्णके तिति भार्य न कम की धिति हाथी | सन्रह नेम बिना जाने नही पाही $िवित जीब दया चारोंगति के चार घरसे ने अभीतकू पार भगा ॥ 2 ॥ दाप भगारह पढ्ित देते झरेहत नहीं हिरदय आने | इप्त तु भ्रठाह दाप लगरह नहा अबतक हाने ॥ संन्‍्यक्त उलत्रप पलि अब सगुझ दया से থান | আতা গিথি मोर्दे नाशी गण आठ वरूंधर के ध्याने ॥ नाथूराप जिन भक्त पार होने को करो धद्योग नया। चारों गतिके चार घरते न अभी तक पार भेया | ४ | ॥ विहस्सान वीसतीथंकर की लावनी १५॥ नन 0220 2 হাছান লিন হাই ভীঘ 8 দীন सद्ाही राजत हैं | तिनका दर्शन तथा सगर्ण विये अप॒ भाजत हूँ ॥ टेक | जम्बूद्वीप थे विदेह चत्तिप्त श्ाठश्राठ में गक पतिश्‌ | मदा विराजे रहै গননা को देते उपदेश | सीपंघर यभधर स्वार्मा आह सआाह श्री परप्रेश। चार मिनेश्वर कहे पिन के पद बन्दन करा हेश ॥ धर्म चौथा बाल जा नित देव दंदू मी बाजत हैं। तिनह्ा दशोन तथा रप्ण किये अपर भानत है ॥ १ ॥ पात ही खड द्वीप मे बिंद३ है चोपतठ अर बस जिवराण आठ माठ मे एक नौकर लिन ই দিগাল | छुजाव और स्वये प्रश्ष ऋषमानन अमन वीर्य महतान । गिशाज सृरी मेनू बचञ् घर चन्द्रानन राख लाग॥ छा! लम गए ब्यव॒द्र और निश्चय अनन्त ग़ण छत हैं| तिनका दशुन तथा দর কিন আগ पानत हैं ॥ ३॥ श्राप पुष्कर द्वीप में चाक्षठ ई নিব জি




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