विचार स्वरुप स्थिति | Vichar Swarup Sthiti

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Vichar Swarup Sthiti by योगी पूर्णनाथ - Yogi Purannath

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्वरूपं स्थिति ] [ ও ईश्वर श्रभिमुख, तुम विवेक को श्रपते ही, दर दो । मत-पतान्तरों के सन्मुख, उसकी स्वतन्त्रता कर दो ॥ वह ॒ प्रकाश भनिर्बेल नियमों को नहीं ठहरमे देवा । पुरनाथ सत्यथ पाकर फिर शरण उसी की लेगा 11२८॥। साधन विरति विवेक आदियुत पथ पर हो यदि चलना । सुतो शोक तज शान्त चित्त से बेंठ, हमारा कहना ॥। माननीय दुमको मम वाणी सहित युक्ति शुति अनुभव । फिर भौ निघा स्वच्छन्दत पुः्णनाय লঙ্ললি নল 11২২1) है सुगढ़तम यह হইত जीवन का सुलभाने को | बिनु प्रभु कृपा न सरल, समझते श्रो समझाने को ।। आवश्यक सुझको हृष्डान्तों का आालम्बन लेता । तुमको पुरणनाथ सुक्ष्म मति, ध्यान घेर्णेशुल देना 11३०॥। रमसे जगत प्रतीत, ज्ञात से तीच काल में सिथ्या | किन्तु निरूपश क्रम भी, श्रुति में हित सुम्ुक्षु को शिक्षा ।। গুলি सिद्धान्त उसय, भ्रम समझे यदि उत्कट जिज्ञासा । पूर्णनाथ सिटती है, ऋ्रम से मन्द सुसुक्षु पिपासा ॥1३१। श्रात्मा से सम्भुत गगन फिर वायु तेज जल धरती । एकोऽहम्‌ बहुस्याम्‌ सृष्टि से पूर्व फुरश ईश्वर करी ।। ईश्वर के संकल्प मात्र से जगत दृश्य सज आया । एरेना लो इसे समस, फिर फुरना লীহী साया ।\३२।।




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