प्रेमचंद की उपन्यास कला | Premchand Ki Upanyas Kala

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Premchand Ki Upanyas Kala by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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নী দিতত-সইহা यद ऋजनन्दन यू ऋननन्दन सहाय फो अवश्य मिलना चाहिये। इनफे 'लालचीन! सिन्दिय्पीगिसका सथा दाधाह्ान्त' मामक उपन्यास बहुत दी श्र्च्छे हैं । হল मौलिक उपन्यासों तथा नये दंग की मौलिक कद्दामियों ने মালিকরা যা মাহা प्रशस्त श्रवश्य बना दिया, पर श्रभी तक बह जैसे यूता-सा मालूम पड़ता था। श्रपनी श्रलौकिक प्रतिभा फा तेम बरसाते हुए, पूरी सजधज के साथ, उस मार्ग पर सम्राद की प्रेमदंद का उदय तरए चलनेयाले 'प्रेमचन्दः जी श्रभी तक दिन्दी के আঁ ফযা-আহি क्षोत्र में नहीं श्राये थे । एनकी कला श्रभी तक उदू में युगान्तर साद्दिय की ही उज्जयलता बढ़ा रही थी, उसी को गीरब-ज्योति प्रदान कर रद्दी थी। मारे साद्ित्याकाश में एनका प्रथम उदय तो सन्‌ १६०५ ६० में दी समझा जाना चाहिए, जब प्रयाग के दरिटयन प्रेस से इनकी 'प्रेमा? निकली थी | पर बह इनका प्रकाश न फैला सकी | श्रौर, सन्‌ १६१६ ई० तक, एक तरह सेये कुदरे में दी टके र्दे | दाँ, उसके बाद, जब 'रुस्स्वती! श्रीर “लद्ष्मी! में इनकी कद्दानियाँ निकलने लगीं तब, लोगो' ने श्रमुभव करना प्रारंभ किया कि हिन्दी के कथा-साद्रित्य में शीघ्र द्वी युगान्‍्तर उपस्थित दोनेवाला है। वद्दी हुआ भी | छोटी-छोटी कद्दानियों के साथ-साथ ये उपन्यास- रचना में भी प्रदत्त हुए और इनकी सुन्दर-सुन्दर कृतियों से द्िन्‍्दी का उल्लासमय गौरव बढ़ने लगा |




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