मुकुट | Mukut
श्रेणी : नाटक/ Drama
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
114
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पहला अंक ११
न जायगी तो नौकरी छूट जायगी । हम जो उसकी कमाई के बारह
रुपये खाते. हैं, वे न मिलेंगे | दा हा हा ! रत्ना ! यही न तुस्हारा भाई
है, तुम्दारी कमाई से जीने वाला! इब मरने को भी जगह नदीं
मिलती सुमे !
रस्ना--मैया ! आज तुम्हें क्या हो गया है ?
गोपाल - मुझे कुछ नहीं हुआ । में तो मह्त हूँ, खाता पीता मौज
करता हूँ । हुआ तो तुम लोगों को है--भश्रक्त पर पाला पढ़ गया हैं जो.
सुर जैसे निखट्टू का इतना आदर करती हो !
रोगिणी--हाय ! में मर जाऊँ तो तुम लोगों को आराम मिले |
गोपाल--दाँ ! हम लोगों को आराम मिले--आराम !
रत्ना--मैया-सैया ! यह क्या बकते हो ? साभी तू दी तो खुप कर
जा! (रोगिणी रोने लगती है । रत्ना श्राकर उसके सिरहाने बैठ
जाती है, श्रीर गोद में तिर रख लेनी है। ) तुम्त जाओ मैया!
कड़ची बातें कह कर भाभी का दिल न दुखाओ | आगे ही बहुत सह
रही हैं ।
गोपाल--( मुँह फेर कर आँसू पोंछता है) सिवाय सताने के
अैने और कुछ किया है बहन ! क्रितनी साथ लेकर आई थी, और यहाँ
मिला कया ? दुःख, सुबह से शाम तक मेहनत और यह बीमारी...
কনা तो जीवन है सैया तुस क्या करते १
गोपाल--मैं कया करता ? ऐसी हालत में सेरा व्याह करना ही'
भूल थी-- रोगिणी अचानक कराह उठती है। रज्ा और गोपाल
उधर श्रुक जाते ই)
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