मुकुट | Mukut

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Mukut by नित्यानंद वात्स्यायन - Nityanand Vatsyayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला अंक ११ न जायगी तो नौकरी छूट जायगी । हम जो उसकी कमाई के बारह रुपये खाते. हैं, वे न मिलेंगे | दा हा हा ! रत्ना ! यही न तुस्हारा भाई है, तुम्दारी कमाई से जीने वाला! इब मरने को भी जगह नदीं मिलती सुमे ! रस्ना--मैया ! आज तुम्हें क्या हो गया है ? गोपाल - मुझे कुछ नहीं हुआ । में तो मह्त हूँ, खाता पीता मौज करता हूँ । हुआ तो तुम लोगों को है--भश्रक्त पर पाला पढ़ गया हैं जो. सुर जैसे निखट्टू का इतना आदर करती हो ! रोगिणी--हाय ! में मर जाऊँ तो तुम लोगों को आराम मिले | गोपाल--दाँ ! हम लोगों को आराम मिले--आराम ! रत्ना--मैया-सैया ! यह क्या बकते हो ? साभी तू दी तो खुप कर जा! (रोगिणी रोने लगती है । रत्ना श्राकर उसके सिरहाने बैठ जाती है, श्रीर गोद में तिर रख लेनी है। ) तुम्त जाओ मैया! कड़ची बातें कह कर भाभी का दिल न दुखाओ | आगे ही बहुत सह रही हैं । गोपाल--( मुँह फेर कर आँसू पोंछता है) सिवाय सताने के अैने और कुछ किया है बहन ! क्रितनी साथ लेकर आई थी, और यहाँ मिला कया ? दुःख, सुबह से शाम तक मेहनत और यह बीमारी... কনা तो जीवन है सैया तुस क्या करते १ गोपाल--मैं कया करता ? ऐसी हालत में सेरा व्याह करना ही' भूल थी-- रोगिणी अचानक कराह उठती है। रज्ा और गोपाल उधर श्रुक जाते ই)




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