गोरा | Gora

Gora by रवीन्द्रनाथ ठाकुर - Ravendranath Thakur

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पृ गोरा मर नहीं जाता । मुझे तो मौत सामने खड़ी होने के कोई लक्षण नहीं दीखते । गोरा-- नहीं दीखते ? विनय-- नहीं । गोरा-- गाड़ी छुटती नहीं जान पड़ती ? विनय --- नहीं बहुत अच्छी चल रही है। गोरा-- ऐसा नही लगता कि अगर परोसने वाला हाथ सुन्दर हो तो म्लेच्छ का अन्न भी देवता का भोग हो जाता है? विनय अत्यन्त संकुचित हो उठा । बोला बस अब चुप हो जाओ गोरा-- क्यों इसमें किसी के अपमान की तो कोई बात नहीं है । वह सुन्दर हाथ कोई असूर्यम्पश्य तो है नहीं । जिस पवित्र कर-पत्लव का पराये पुरुषों के साथ शेकहैण्ड भी चलता है उसका उल्लेख भी तुम्हें सहन नहीं होता तदानाशंसे मरणाय संजय विनय - देखो गोरा मैं स्त्री-जाहि में श्रद्धा रखता हूं। हमारे शास्त्रों में भी अल फल गोरा -- स्त्री-जाति में जैसी श्रद्धा रखते हो उसके लिए शास्त्रों की दूहाई मत दो उसको श्रद्धा नही कहते । जो कहते हैं वह ज़बान पर लाऊंगा तो मारने दौड़ोगे । विनय- - यह तुम्हारी ज्यादती है । गोरा-- शास्त्र स्त्रियों के बारे में कहते है पूजाहा गृहदीप्तय । वे पूजा की पालन हैं क्योंकि गृह को दीप्ति देती हैं । विलायती विधान में उनको जो मान इसलिए दिया जाता है कि बे पुरुषों के हृदय को दीप्त कर देती हैं उसे पुजा न कहना ही अच्छा है । विनय--- कही-कही कुछ विकृति देखी जाती है इसीसे क्या एक बड़े भाव पर ऐसे छीटे कसना उचित है? गोरा ने अधीर होकर कहा विनू अब जब तुम्हारी सोचने-विचारने की बुद्धि नष्ट हो गई है नव मेरी बात मान ही लो मैं कहता हूं विलायती शास्त्र में स्त्री-जाति के बारे में जो सब बड़ी-बड़ी बाते है उनकी जड़ में है वासना । स्त्री - जाति की पूजा करने का स्थान है माता का पद सती-लक्ष्मी गृहिणी कः आसन बहाँ से उन्हें हटाकर उनका जो स्तव-गान किया जाता है उसमें अपमान छिपा हुआ है। जिस कारण से तुम्हारा मन पतंगे-सा परेश बाबू के घर के आस-पारा चक्कर काट रहा हैं अंग्रेजी मे उसे कहते होंगे लव किन्तु अंग्रेज़ की नक़ल में इसी लव के व्यापार को ही संसार का एक चरम पुरुषार्थ मानकर उसकी उपासना




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