पांडव चरित्र [भाग -2] | Pandav Charitra [Bhag -2]
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
230
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पाण्डव चरित | ~ १९
पुरोहितजी की बात सून कर गांधारी कुछ मुस्कराने
लगी पर वोली नहीं ! चित्रलेखा ने कहा--पुरोहितजीः।
राजसभा की सव वातं राजकुमारी सुन चुकी हैं । इन्होंने
ग्रन्थे धृतराष्ट्र को पति वनाना स्वीकार कर लिया है। श्राप
वृद्ध दहै, इसलिए कहना नहीं লাইলী. |
पुरोहित को आश्चर्य हुआ । उसने कहा - भयैः जाति
में विवाह जीवन भर का सोदा माना. जाता हैं ।जीवन,भर
का सुख-दुःख विवाह के पतले सूत्र पर हो अवलम्बित- है,
विवाह शारीरिक ही नहीं वरन् मानसिक. सम्बन्ध भी. है
और मानसिक सम्बन्ध की यथार्थता तथा. घनिष्ठता, में. ही
विवाह की पविन्नता और उज्ज्वलता है। इस तथ्य पर
ध्यान रखते हुए, इस विषय में राजकुमारी को मैं पुनः
विचार करने के लिए कहता हूं ।-तुम सब भी उन्हें उम्मति
दे सकती हो ।
गांधारी भली-भांति जानती थी कि अन्धे के साथ मुभे
जीवन भर का सम्बन्ध जोड़ना है। उसे अन्धे के साथ
विवाह करने से इन्कार कर देने की स्वाधीनता थी। सखियों
ने उसे समभाने का प्रयत्न सी क्या! गांधारी युवती है
সা सांसारिक ग्रामोद-प्रमोद की भावनाएं इस उम्र में
सहज हो लहराती है । लेकिन. गांधारी मानों जन्म की
योगिनी है । भोगोपभोग की आकांक्षा उसके मन में उदित
ही नहीं हुई । उसने सोचा--दुप्टों द्वारा पिता सदा सताये
जाते- हैं और इस कारण पिताजी की शक्ति क्षीण हो रही
हैं । यदि में उनके लिए औपध रूप बन सकू' तो क्या ' हज
है ? मुझे इससे अधिक झौर क्या चाहिए ? यद्यपि, इस
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