सर्वोदय दर्शन | Sarvoday Darshan

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Sarvoday Darshan by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चार प्रइत : पुनर्जेन्स, प्रेरणा, वर्ण और आश्रम ११३ गासन उस पर नहीं चछृता। नागरिक धर्म उसके लिए सहज हो जाते हे । कानूनों का अनुशासन उस पर नही चलता। जिसे लोग कहते हँ न कि वही अपना शासक ओर कानून वेन जाता है । निस्त्रेगुण्यो पथि विचरतां को विधिः को निदधः ८ मापा आध्यात्मिक है, लेकिन हम अध्यात्म की भाषा से अपनी भूमिका के अनुरूप अथं निकाल ले। हमारे अनुरूप अर्थ यह है कि हर नागरिक के जीवन मे एक ऐसी अवस्था आनी चाहिए कि जब उसे राज्य-शासन की आवश्यकता न रहे। राज्य-शासन के विना उसकी नागरिकता के सारे धर्मो का पालन सहज रूप से होगा। इस राज्यातीत स्थिति को में नागरिकता में संन्यास” की स्थिति कहता हूँ, जिसमे उसने उत्पादन के भी कत्तंव्य का आग्रह छोड़ दिया है, प्रतिमूल्य का तो लोभ सर्वथा छोड ही दिया है। “तुम क्‍या कमाते हो ? ” “में कुछ नही कमाता ।” “तुम क्या करते हौ? “समाज म॑ रहता हूँ, जो कुछ करना पडता है, वह इस शरीर से हो जाता है। में करता हूँ, यह मे नही कहता 1 “समाज से क्या लेते हो ? ” “जितना कम-से-कम ले सकता हूँ, उतना लेता हूँ । उसको भी कम करता चला जा रहा हूं।” यह्‌ “सन्यासी वृत्ति' कहलाती है, जिसे मे नागरिक की राज्यातीत स्थिति कहता हूं । यदि कुछ नागरिको के जीवन मे राज्यातीत अवस्था आयेगी, तो शासनमुक्त समाज का विकास हम समाज मे कर सकेगे ।* ৪৪৩ * विचार-दिविर, भहमदावाद मे २२-८-५५ कौ अपराहण मे किय गये प्रश्नों का उत्तर | ८




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