परीक्षा | Parikcha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| ৭২ | नीलकण्ठ पित्ला : (मन्द स्वर में बड़ सन्तोष से ) तव तो पास दहो गया, श्रीमन्‌.................. आपने ही रक्षा-की। (पैरों पर गिरता है ।) जनादन पिल्‍ला: उठो ! यह कैसी दुबलता है। पास हो” ऐसी प्राथना करते हृए ही रने कापी खोजी थी । | नीलकण्ठ पिल्ला उठकर आप्र पोता है] फिर भी बाँसठ कैसे ? मैंने किसी को भा प्रचपन से अधिक अंक नहीं दिये हैं । कुछ समय तक इन्तजार करो । मुञ्चे दुबारा गिनना चाहिए ^ ` नीलकंठ पिल्ला : इस वार उसने बहुत अधिक पढ़ा है । जनादन पिल्‍ला : श्‌...............बोलो मत............... नीलकण्ठ पिल्ला : भगवान दयालु है न! जनादनं पिल्ला : (ग्रिनना समाप्त करके) नहा, ईश्वर दयालु नहीं है नीलकण्ठ पित्ला! इस बच्चे के केवल छब्बीस अंक . हीहैं। नीलकपण्ठ विल्ला : (दी निःश्वात लेकर) हाय! ` जनादन पित्ला : (फिर कापी पर देखकर अंक मिनता है) छ: और - चार, दस और तीन, तेरह और पाँच, अठारह और चार, बाईस और एक, तेईस और तीन, छब्बीस अंक ही हैं। गलती से लिखने में बाँसठ हो गये । ` नीलकण्ठ पिल्‍ला : अब फेल हो गया ? जनादन पिल्ला : ऐसा ही समझना चाहिए नीलकण्ठ पिल्ला : (मन्द स्वर में) फेल हुआ / इस बार भी......... ? जनादन पिल्‍ला : बैठिए




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