गुरु गोबिन्दसिंह और उनकी हिन्दी कविता | Guru Govind Singh Aur Unki Hindi Kavita

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Guru Govind Singh Aur Unki Hindi Kavita by महीप सिंह - Mahip Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रिष्थितियों की पृष्ठमुमि है ३ प्रधिकाशतः सुरा-मुन्दरी मरौर शिकार मे ही व्यस्त रखा 1 औरगजेव ने भपने शासनकाल में जिस घामिक झसहिषप्खुदा की नीठि को भपनाया, बस्तुतः उसका सूत्रपात झाहजहाँ के ही शासनकाल में हो छुका था। सन्‌ १६३२ ई० मे शाहजहाँ ने फर्मान निकाला था কি ক্স आगे से नये मन्दिर नहीं बनवाये जायें झौर जो मन्दिर बनाये जाने के क्रम में हो, वे तोड़ दिये जायें। गो-ह॒त्या की मुमानियत भी जो भ्रकवर के समय से चली प्रा रही थी सन्‌ १६२६ ई० के झासप्रप्त ढीली हो गयी ।' इस घामिक नीति के परिणामस्वरूप मुभ्रल सत्ता के श्रति हिन्दुमों का राजवीतिक विरोध द्ाहजहाँ के काल में ही प्रारम्भ ही गया था जिसका चनुर्मुखे विस्फोट भौरगदंव के श्रासनकाल में हुआ | भारत मे झताब्दियों से स्थापित मुसलमानों राज्य की नीतियो के विरुद्ध हिन्दुश्रों का सभी मो्चों पर प्रभावशाली और सुनियोजित विरोध सर्वप्रथम सिस्न-गुरुप्रो के नेतृत्व मे ही प्रस्तुत किया गया । मनुष्य मात्र की समता, एकेदवर की सत्ता मे विश्वास, मूर्तिपूजा के खण्डन और स्वत्व के जागररा के सदेश्व द्वारा गृुदद नानक उस मुसलमानी सत्ता के विरुद्ध अ्रपता परोक्ष विरोध प्रस्तुत कर चुके थे। भाई परमानन्द के क्षब्दों में सदियों क्री गुलामी के पीछे गुरु नानक पहले हिन्दू ये जिन्होंने भ्नन्याय और प्रसमानता के विरुद्ध म्रपर्न; प्रावाज उठाई ।* मुसलमान भपने एक हाथ में तलवार भौर दूसरे में कुरान लेकर इस देश्व में आ्राए थे। उन्होंने हिन्दुओं को भपने घर्म में दीक्षित किया । भपनी रक्षा के लिए हिन्दुओं ने पपने आपको जातिभेद के प्रमेद्य दुर्ग में बन्द कर लिया। परिणाम यह हुमा कि जबकि हिन्दू “तुतके जद्ंगारी? के इस फ्रारसी अरा का भावानुवाद इस प्रकार दे : “गोइदबाल में जो हि विआइ (व्यास) नदी के किनारे पर दे; पीरों और जो के मेस में अजु'न नाम का एक ईिन्दू था। उसने बहुत से मोले-भाले दिन्दू, बल्कि बेसममः और मूम मुसलम्पनों को भी अपने रइनसंहन क! अनुगामी बनाकर अपनी धुरगी और ईरवर से निकटता का ढोल बहुत कॉँचा बजाया हुआ या। लोग उसे गुरू कहते थें। सभो ओर से फरेवी और फरेव के पुजारी उसके पास आकर उस पर पूरा विरवास प्रकट करते ये । तीन-चार पीड़ियों से उनकी यद्द दुकान गम थी । कितने समय से मेरे मन में यई विचार भा रहा या कि इस भू के ब्यापार को बन्द करना चाहिए या उसे मुसलमानों के मत में लाना चाहिए। यह तक कि इन्हीं दिनों में खुस्ररो यहीं से नदो पार हुआ ! হয় जाहिल झौर इकौर आदमी ने सोचा कि सदा उसके निकट रहे। उस स्थान पर जहाँ उसका निवास- रुघान था, मुसरों ने पढ़ाब किया। यह उसे मिला और कई पढ़ले से निश्चित की हुईं बातें सुनाई भौर केसर से क़ उयलो उसके मस्तक पर खगायी, जिसे বিন্বু বিন হবি ই और अच्छा सगुन सममते है यह वात मेरे, कान में पढ़ी 1 पहले ही मैं इनके भू को अच्छी तरइ जानत्य या । मने मर्म “दी कि उसे दानिर किया जाए और उसके घर झर तथा बच्चों वो मुत्तद़ा स्राव को सौंप दिया और उसकी धन-मन्पत्ति जब्त करके आड़ दौ कि उठे दयं, मारं, सवय दे ध्र यानः देक गष कर्‌ হা १. देखिए--सस्कृति के चार अध्याय, ০ ३०८ दया ए रॉर्ट दिग्दी आफ ভিতর? ০ ४२। ३. बीर दैरागी; ए० ११




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