गोम्मटसार (जीवकाण्ड) | Gommatsaar Jivkand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१८ श्रीमद्‌ राजचन्द्रजेनक्ास्त्रमालायाम्‌ हृदयंगत करे, भौर यदि कुछ निः सारता या विपरीतता माल्म पड़े तो उसे मेरी कृति समझें, और मेरी अज्ञानतापर क्षमा प्रदान कर \ यह टीका स्व. श्रीमान्‌ रायचन्द्रजी द्वारा स्थापित 'परमश्नुतप्रभावकमण्डल'की तरफसे प्रकाशित की गई है। अतएव उक्त मण्डल तथा उसके आनरेरी व्यवस्थाप्रक शा. रेवाशंकर जगजीवनदासजीका साधुवादन करता हूँ। इस तुच्छ कृतिको पढ़नेके पूर्व “गच्छतः स्खलन बवापि भवत्येव प्रमादत: । हसंति दुर्जनास्तनर समादधति सण्जना:” इस इलोकके अर्थंकों दृष्टिपथ करनेके लिए विद्वानोंसे प्राथंना करनेवाला-- ७-७-१९१६ ई. खूबचन्द जैन २ रा पीजरापोर-बम्बई नं. ४ वेरनी ( एटा ) निवासी




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