दम्पति सुख साधन प्रथम भाग | Dampati Sukh Sadan Pratham Bhaag

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Book Image : दम्पति सुख साधन प्रथम भाग  - Dampati Sukh Sadan Pratham Bhaag

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१३ स्वाधीनता प्राप्त होकर अनेक ग्रहिणीगण अतिशय बढ जाती हैं, जो काम पतिके करने योग्य होता है अथवा जिस कामके करनेमें पति समर्थ हो, उस कामको करनेकेलिये अपने आप दौड़तीं है, सो इसप्रकार करना उचत नही. इससे पतिका मन विरक्त हो सक्ता है, इसकारण जिसका जो काम्यं है, उसीको षह कार्य्यं करना चाहिये, अनेक ज़रिये पतिको प्रसन्न रखनेकेलिय जिस धर्मम अपना श्रद्धान ( वि- श्वास ) नहीं, उस धर्मकों ग्रहण करलेतीं हैं. अर्थात्‌ अपने सनातन এল धमोचरणको त्याग कर दयानन्दी आदि भाधुनिक मतांको प्रदण करलेती हे. सो ऐसा कदापि नहिं करना चाहिये, धर्तके विषय स्वार्धीनताके साथ परीक्षापूर्वक जिसपर अपना टृढभ्द्वान हो, वही धर्म ग्रहण करना चाहिय, दूसरोंको देखादेखी व कदनेसे पमोचरणका करना उचित नहिं समझ्नषा जाता. মন, (४) घनकी महिमा वर्णन करनेकी काई आवश्यकता नहीं टै. क्योकरि-आकखवृद्‌ भलेप्रकार जानते हैं कि पेसके विना कोई भी संसारिक कास्यं नहि चलः सक्ता. परन्तु खदका! स्थान यह हैं क्रि-भनकी इतनी उपकारिता जाननेपर भी इसका संचय करना व व्यय करना नहि साखते, क्थोफि-व्ययक्ते दोषसे अनेक गृहरुथ- गण दरिद्री हो गये और संचयगुणऊे प्रभावसे अत्यन्त अल्‍्य आयवाले भी ध- नाढ्य हो जाते हैं. सबकी ही अपनी २ अवस्थाके अनसार व्यय ( खचे ) करना चाहिये. अ- नेक मद्दाशयोंकी दूसरोकी देखादेखी व्यय करनका रोग হী বাতা है, मो यह अत्यन्त द्वानिकारक है. कोई ২ मद्राशय तो ऋण ( कर्ज ) लेकर ही दूसरोंकी देखादेखी व्यय करनेमें अग्रसर हो जाते हैं, सो इसप्रकारके गृहस्थको कदापि सुख नहिं हो सक्ता. क्योंकि जिस समय विवाहसादी वर्गरइमें व्यय करते हैं, उससमय तो सबमने प्रशंसा करते हैं परन्तु दरिद्र दो जानेपर काई बात मौ नहिं प्ता कि अमृझ मद्गाशय कहां रहते है. ओर उनकी क्या अवस्था है? “दो पैसे सश्वय करनेसे विरक्राल सुखसे व्यतीत द्वोता है और सब जने निरन्तर आदर सत्कार करते रहते है,'' यह वाक्य सदैव स्मरण रखना चाहिये. अनेक महाशयो यह दोष है कि-स्यय करते समय ल्लीक कुछ भी सम्मति नहिं लेते. अपनी इच्छा व दसरोंकी उत्ते जनासे खर्च करते रहते हैं. यदि तुम




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