विश्वभारती पत्रिका | Vishv Bharti

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Vishv Bharti by रामसिंह तोमर - Ramsingh Tomar

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about रामसिंह तोमर - Ramsingh Tomar

Add Infomation AboutRamsingh Tomar

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
१२० विश्वभारतों पत्रिका किंतु, अधिकतर बह बौद्धिक एबं दिक्षा-दस्कार मे पटी हुरे इद्धि को अविश्वस्त एवं' तरस्य रहने देती है। गांधीजी इतिहास के भी कोई अच्छे विद्यार्थी नहीं थे। पुराने फ़्माने के हृष्ठाओों की तरइ ही उन्होंने इतिहास की सृष्टि की। भतएव उनके कायं की व्यावहारिक रूपरेखाए' तथा उनकी व्याश्याए' उनके दर्शन की सृष्टि करती हैं। भाज का युग पेगम्बरों और दृषाओं के लिए नहों है। वह खनश्रमाण, भन्तद्चेतना पर भाधारित ज्ञान में विश्वास नहीं करता। बह अन्तः्रेरणा में विश्वास नहीं करता से ही धर्म, दर्शन, विज्ञान तथा कलाओं में कुछ महृत्तम सत्य तक॑ का परिणाम न द्वोकर अत्यत प्रतिमाशाली व्यक्तियों क्री अन्तश्चेतना का परिणाम हों। हमारा युग औद्धिक, तार्फिक एवं वेज्ञानिक युग है। प्रत्येक बात जो कट्दो जाती है वह बौद्धितता लिए हुए तथा तक सिद्ध होनी चाहिए। उसका संबंध एवं सगठनात्मक योग भूत एवं तमान में प्राप्त ज्ञान के साथ होना चाहिए। ऐतिहासिक घटनाओं की प्रामाणिकता के द्वारा उसे और मी मजबूत बनाना चाहिए। किसी बौद्धिक ढाँचे में उसे फ़िट दोना चाहिए। पुराने ज़माने में मनीषी और देगम्बर अपने निष्कषों तक अंत हि और खतःप्रमाण के भाधार पर पहुँचते थे उनका कहना था कि सपनो साधना, अरर भ्यान गौर्‌ योगाभ्यास के द्वारा उन्होंने बहू झान प्राप्त किया। इसलिए वे अपने ज्ञान के पक्ष में एक आध्यात्मिक सत्ता के प्रमाण का दावा कर सकते थे। उनके इस दावे को शायद हो कभी चुनौती दी गईं। अगर किसी प्रमाण की आवश्यकता हुई तो जिसतरइ का আনন उन्होंने जिया, जो करिश्मे उन्होंने संभवत: दिखलछाएं, भौर जिस तरह की साहित्यिक एवं काव्यमय शैली छा उन्होंने बोलने तथा लिखने फी भाषा में प्रयोग किया, वे सब ही उनके प्रमाण बन गए। पुराने ज़माने के हृष्टाओं ने यहां तक दावा मी किया कि मूलभूत अथवा आधारभूत सत्य तके द्वारा सिद्ध नहों किया जा सकता। ददादरणार्थ, ईसा ने अपने संबंध में इश्वर का पुत्र होने को घोषणा को! इस कही गई बात के लिए कोई तकं-सिद्ध प्रमाण नहीं है। किन्तु फिर भी खनके अजुयायियों ने उसे सच माना ओर भाज भी उसे खच मानते है । मुहम्मद ने अपने को ह्र का दृत घोषित किया और उनके सभी अनुयायो--पहले और आज के---उन्हें दूत ही मानते हैं। श्रीक्षष्ण ने छ्यष्टलः अपने को सर्वोत्तम मगवान पुश्योत्तम घोषित किया भौर हिन्दुओं का इसमें निहित विश्वास है। गौतम बुद्ध ने केवल निर्वाण-प्राप्ति का दाषा किया, और अपने अनुयायियों के लिए वे दध है चिन्नि निर्वाण प्राप्त किया या, कितु यह बात ज़हर है कि इन महादुरुषों ने कुछ बातों का स्पष्टीकरण किया। यह मौ सच है कि भादिकाल से चली भाती हुई परम्परा, रीति-रिवाज़ और मान्यताओं ष्टी बजह से




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now