वासुदेवहिण्डिप्रथमखण्डम् | Vasudevahindiprathamakhandam-1930
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
216
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चरियं ] ` कहुप्पत्ती । $
स्सति अहा बागरिओ अरहया । तओ पतीस परितोसविसपियहिययाए 'एबमेयं जहा
भणिहि-त्ति अदिलसिओ । आहूओ से गब्भो देवो बंभकोगचुओ । समुष्पन्नो य से
दोहलछो जिणसाहुपूयाए, सो य विभवओ सम्माणिओ |
पुण्णदोहला य अतीतेसु नवसु मासेसु पयाया पुत्तं, सारयससि-दिणयराणुवत्तिणीहिं कंति-
दित्तीहिं समालिंगियं, सुधंतवरकणगकमलकणियारसरसकेसरसबण्णं , अविसैन्नपुश्नवण्णं , 5
पसत्थलक्खणसणाहकरचरणनयणवयणं । फयजायकम्मस्स य से जंबुफललाभ-जंबुद्दीवा-
धिवतिकयसमज्छनिमित्तं कयं नाम “जंबु'त्ति । धाइपरिक्खित्तो थ सुहेण वहिओ।
कलाओ य णेण अणंतरभषपरिचिताओ दंसिअमेत्ताओ गहियाओ । पत्तजोब्णो य “साणु-
क्रोसो, पियंबओ, पुषाभासी, साहुजणसेवगो' त्ति जणेण परितोसवित्थिन्ननयणेण पसं-
सिज्लमाणो, अलंकारभूओ मगहाबिसयस्स जहासुहमभिरमह । 10
तम्मि य समए भयव॑ स॒ुहम्मो गणहरों गणपरिवुडों जिणो विव भवियजणमणप्पसा«
दजणणों रायगिहे नयरे गुणसिलुए चेइए समोसरिओ । सोऊण य सुहम्मसामिणो
आगमणं, परमहरिसिओ वरदिणो इव जटधरनिनादं , जंबुनामो पवहणाभिरूढो निज्लाओ ।
नाष्दूरे पमुक्षवाहणो परमसंविग्गो भयवंतं तिपयादिणं काडण सिरसा नमिङण आसीणो ।
तओ गणहरो(रेण) जंबुनामस्म परिसाए य पकदिओ--जीवे अजीवे य; आसवं , बंधं, 16
संवरं, निजरं, मोक्खं च अणगपजवं । तं सोडण भयवओ वयणवित्थरं जंब्ुनामो विरा-
गमग्गमस्सिओ, समुदि परं तुद्टिमुषहंनो, वदिडण गुरं विन्नवेद--सामि ! वुव्भं अंतिए
मया धम्मो सुओ, तं जाव अम्मापियरो आपुच्छामि ताव तुव्भं पायमूटे अत्तणो दियमा-
यरिस्सं । भयवया भणियं--किध्चमेयं भवियाणं ।
तओ पणमिऊण पवहणमारूढो, आगयमग्गेण य पद्टिओ, पत्तो य॒ नयरदुवारं । तं च 20
जाणजयसंवाधं पासिङण वितेद-- जाव पवेसं पडिवाटेमि ताव कालादक्षमो हवेत, तं
सेयं मे अन्नेण नयरदुवारेण सिग्घं पविसिड । एवं चितेडण सारही पमणिओ-सोम !
परावत्तेहि रह, अन्नेन दुवारेण पत्रिसि्सं । तओ सारदिणा चोडइया तुरया, संपाविओ रो
जहासदिद् दुवारं । पस्सह य जवुनामो गजुपडिवद्धाणि मिटा-सतग्धि-कारचक्षाणि टंव-
माणाणि परवबल्पहणणनिमित्तं । ताणि य से पस्समाणस्म चिंता जाया--'कयाइ यादं 25
ব্তল रहोवरि, तओ मे विसीटस्स मयस्स दुग्गदगमणं हवेज' त्ति संकप्पिङण सारि
भणइ---सारहि ! पडिपहहुत्तं रह पदे, शुणसिरयं वेद्यं गभिस्सं गुरुसमीवे । “तह त्त
तेण पडिवन्नं । गओ गुरुसमीवं, पय विन्नवेदह--'भयवं ¦ जावल्नीवं बंभयारी विहरिस्स'
নি गिहीतबओ रहमारुहिडण नगरमागतो , पत्तो य नियर्मभवणं ।
१ तीए परितोसवसक्षिस० उ० ॥ २ कण्णिया० उ० ॥ ३ “सण्णं पस उ ० । सक्तपुम्ववश्षनपस” क०
क्पुश्नवन्न पस संम० ॥ ४ परिक ली ह३॥ ५ ली ३ खं० विनाउ्यत्र- जुधर्ग संबार्ध गो०वा” । जुगो
धसंबाध क ० सं०॥ ६ क ३४० विनाध्स्यत्र जली ३ | “जं गो २॥ ७ पाडेश क १ गो ३२३०॥ ८ थालयण्ण क १॥
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