गांवां रो साहित्य भाग - 1 | Gavaro Sahitya Bhag 1

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Gavaro Sahitya Bhag 1 by गिरधारीदान - Girdharidan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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फास्मुनशकल संमुत्था भाद्रपद॒स्यसिते विनिर्देशयाः । तस्वैब कृष्ण पक्षोद्या वास्तु ये तेडश्वयुक शुक्ते ॥ फागण मास रे उजाल पास रो गर्भ भादवे अंधारे पाख में और अंधारे पात् रे गर्भ रो जन्म भासोज रे ভলান্ট पाख में बताणो जोईजे॥ । चैत्रप्तितं पक्ष जाता; क्ृष्णेडश्व युजस्य वारिंदा गर्भा । चैत्रासिंत संभूताः कातिक शुकक्‍्लेंडसि वपन्ति ॥ चैत रे उज़ाछ पाल रो गभं आसोज *रे भ्रंघारे पाख ' में जछ देव ই জহি জনই আজি पष्ठ रे कठी रे अंधारे पाष्न में वर्षा करें है-- पपे समार्मशीपे सन्ध्या रागोऽम्बदाः सपखिषाः ` न्यर्थं शगक्गीये शीतं पौपेऽति हिमपातः ॥ मिगसर और पी में संज्या री लाली लोयां चक्‍क- रदार बादल होवे तो मिगसर्‌ में धणी ठंड ओर पो में पात्ठो पड़ने से मंर्मे पक्‍को को होवं/नो । | « এ माघे प्रबली वांयुस्तुपारकुलुशघती रविशशा्े। अतिशीतं सघनस्य च भानोर स्व्थोदयो धन्‍्यों ॥ माहुर महीने में जदि जोररी हवा चाले, स्रंज-चाँद *जवांरों साहित्य--भाग पहलड़ो /४५




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