मुकुन्दमाला | Mukund Mala

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Mukund Mala by डॉ रवीन्द्र कुमार सेठ - Dr Ravindra Kumar Seth

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मुनुन्दमाला इन तीनो ग्रत्यो का प्रकाशन मद्रास विश्वविद्यालय ने किया है'--उस विश्व» विद्यालय ने जिसको अज्ञानवश हिन्दी-विरोध का केद्ध समझा जाता ই। হন क्रम में दूसरा महत्त्वपूर्ण बेन्द्र शातिनिकेतन विश्वविद्यालय बन यया दै, जहाते रामसिह तोमर के सपादकत्व मे 'नालायिर दिव्यप्रबधम्‌” का हिंदी-अनुवाद ভরত प्रवाशित हो रहा है। 'दिव्य प्रवधम्‌' की मान्यता वेद-पुराण के समकक्ष है, यह माद्यवार सन्तो के चार सहस पदो का संग्रह है। इस दिव्य पग्रन्थमाला के प्रकाशित हो जाने पर हिन्दीभाषी पाठकों को भी भवित के उद्भव का सीधा परिचय प्राप्त हो सकेगा । भापा-साहित्य की साधना मे दिल्ली विश्वविद्यालय का भी भपना योगदान है। हमारे तीन विद्याधियों ने (जो अब बलिजो मे हिन्दी मे वरिष्ठ प्राध्यापक बच चुके हैं) तमिल-हिन्दी के तुलनात्मक विपयो पर शोध कार्य दिया है और भावी अध्ययन-लेखव के लिए उसी सेतर न षरण कर लिया है! डॉ० (कुमारी) फे० एर जमुना बे विषयमे यह कहा जा सर्गता है कि जन्म एव रिक्षा-दीक्षा दित्ती में होने पर भी उनकी मातृभाषा तो तमिल ही है और उनका परिवार वैष्णव है, इसलिए पी एच० डी० उपाधि के निमित्त 'दिव्य प्रदधम एवं भूरसागर की तुलना' करने के पश्चात भी वे तमिल और हिन्दी साहित्यो वे आदान-प्रदान में दत्तचित्त हैं, समय समय पर उनके लेख तथा पुस्तकों का प्रकाशन होता रहता है। परन्तु डॉ० (श्रीमती) विनीता भल्‍ला तथा डॉ० रवीन्द्र कुमार सेठ तो ठेंठ पजाबी हैं, तमिल भाषा को सीखबर तमिल हिन्दी का शोधकार्य सम्पन्त करने वे कारण इन दोनो की सराहना ब्रनी ही पडेगी। विनीता भरला के शोध प्रन्य 'शिलप्पदिकारम तथा पद्मावत' का चयन दिल्ली विश्वविद्यालय ने अपनी प्रकाशन-योजना के अन्तर्गत कर लिया है। रदीन्द्र कुमार सेठ ने शोध-बार्य वे निमित्त तिरुवल्लुवर तथा बवीर या तुलवात्मक अध्ययन किया था। ग्रन्थ के प्रकाशित होते ही उनकी ख्याति फ्लने लगी, जिससे जाह्ृष्ट होकर डॉ० सेठ ने तमिल और हिन्दी साहित्यो को एक-दूसरे के निकटतम पहुंचाना ही अपनी साहित्य-साधना का लक्ष्य बना लिया | यहा यह सूचित कर देना आवश्यक प्रतीत १ (ক) 4১ ০০71031509৩ 51905 ০1 কহ 25205 200 70125 89025908 01971) (ख) লিহষকনুষত कृत तिस्वहुरल, (मूस एवं हिन्दी अतुवाद) (१६५८) (ग) (आदि तमिल महाह्ाष्य) चिलप्यदिद्यरम (का द्विदी अनुवाद) (१६७६) १७




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