उष्मा | Ushama

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रसिक मेहता - Rasik Mehta

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शिवचरण मंत्री - Shivcharan Mantri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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9 बुद्ध दिनो बाद पत्र श्राया कि उप्मा को भिजवा दें । नीले झासमानी रग का इन्टरलेशनल लिफाफा” । डाक ने लिफाफा मधुसूदन को देने वे बजाय उध्मा को दे दिया । उप्मा ने लिफाफा खोला, पूरा पढ़े, इससे पहले ही उसको फिट या दौरा प्रा गया मधुसूदन यह देखकर काप उठे * इस समय वे उप्मा पर कुछ कठोर हुये श्र कठोर शब्दो मे कहा यदि तू ऐसे ही मु ह्‌ बद बरके बैठी रहगी तो मुझे किस बात की खबर हो सकती है ? मैं ऐसी दशा में वर भी क्या सकता हू ? रोते हुये स्वर मे उपष्मा ने जवाब दिया भव आपको क्या करता रह गया है पिताजी २ न जाने क्यों मेरा दिमाग वमजोर हो गया है। कुछ दवा लेने से ठीक हो जायेगा, वैसे चिन्ता करने की कोई झ्रावश्यक्ता नही । “चिन्ता? इससे बढकर बेटी भौर दया चिन्ता रहेगी ? भ्रषनी एक मात्र पुत्री का मुख देखकर मधुसूदन वात्सल्य भाव से रोने लगे । पिता वी गोदी में सिर डालकर उप्मा भी पहली बार रोने लगी । उष्मा कुछ इस प्रकार से रोई कि उसका हृदय विचलित हो उठा । इससे मधुमूदन के मन को कुछ शाति मिली | उन्होंने विचार किया कि इस' प्रकार श्रश्न की झनर्गल धारा मे कुछ नई वात निवलेगी, जिसको उष्मा ने ग्रव तक मुभमे छिपाया है, वहू बात अवश्य कहेगी । पर उष्मा, जिसका नाम भग्र बाघ के अ्रश्न, जल में चाहे कितने ही मिट्टी के ढेले वह जाए, किन्तु एक भो शब्द यूदि इस प्रवाह में निकल जाय तो फिर वह देसाई कुट्म्व वी कंसी दुहिता ? किन्तु देसाई कुटम्व की दुहिता वाला भ्रतीव गर्व का यह प्रच्छन प्रणीत पोषण भ्रव व्यथित हो रहे मघुसूदन को वास्तव में प्रभद्र प्रतीत होने लगा । झाखिर यह्‌ कसी छोकरी है ? न बोई बात चीत श्रौर न कुछ, और बस” । हे दुखी हीकर उन्होने पूछा उप्मा मैं सूरत कागज लिख दू कि उप्मा को । वाक्य श्रधूराही रह ग्या। उन्न निस्वर प्रणत उष्माके फिटकेसाय टकराकर पुन उनके श्रन्व्मन मे विलीन टौ गया! मघुसूदन व श्वास पुटने लगा । एक' सप्ताह बाद उष्मा को बहुत प्रसन्न देखकर उन्होने उससे पूछा मैं, तेरे सुसराल वालो को पत्र लिख देता हू कि कुछ दिनो मे कसी के साथ भेजने का इस्तजाम कर रहा हू । किन्तु किस के साथ तुझे रवाना करू श्रौर इस प्रकार रास्ते मे तुझे वार-बार फिटस्‌ू झा जाय तो तेरे साथ-साथ, ले जाने वाले की क्‍या हालत होगी, तनिक विचार करके देख ले ? টু জী




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