आधुनिक भारतीय इतिहास | Aadhunik Bharatiya Itihas

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Aadhunik Bharatiya Itihas  by जी.एस. छाबड़ा - G.S. Chabra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भात्तत्त 6/९ल्‍८ ७६५ ^~. ~ ~~~. ५ निचश्य हुआ। कपनी के व्यापारिक लाभ से और कोई धन तव तक देय नही होता था जब तक कि लाभाश वितरित नही करा दिया जाता था। राजस्व मे धन के बचने पर विशेष असफलताओ को झेलने हेतु कपनी 10 लाख पौण्ड का धन अलग रख देती थी । कम्पनी को कलकत्ता मे एकं विशप की नियुक्ति के लिए कहा गया जिसके अधीन तीन आकडेक्स नियुक्त होते थे । यह सुविधा इण्लंड के धम उसाहिया कै लिये थी । कपनी से यह्‌ भी अपेक्षा की गई कि वह प्रतिवष एक लाख रुपये की व्यवस्था कर॑ जिसे “साहित्य को पुनर्जीवित व विकसित करने तथा भारत के विद्वानों को उत्साहित करने व भारत के त्रिटिश क्षेत्र के नागरिका बे मध्य विज्ञान की शिक्षा को स्थापित व उनत करने” पर व्यय किया जाय। मे महत्वपूण धाराये थी जिससे स्पष्ट था ताज की सप्रभुता भारत के कपनी क्षेत्र पर प्रभावी हो गई | बोड आफ कट्रोल की शक्ति पर्याप्त बढा दी गई, क्पती को ताज व ससद के अधिक अधीन कर दिया गया। नागरिक व फौजी प्रशिक्षण हेतु कपनी के सेवका के प्रशिक्षण पर उनका नियत्रण बोड के नियवण को बढाने मे और सफल हो गया। क्पनी के! एकाधिकार की समाप्ति भी कम महत्त्वपूण नही थी। ब्रिटेन के व्यक्तिगत व्यापारी अब भारत मे आकर बस सकते थे और कपनी के व्यापार से होड ले सकते थे जो इसके पहले नही था । इस तरह व्यापार का मूल्य बढ गया। 1813 मं यह एक करोड तीस लाख पौण्ड था जबकि 1865 मे बढकर 100 करोड पौण्डहौ गया। भारतीय व्यापार का इग्लड के व्यक्तिगत व्यापारियों के लिए खोला जाना जहा एक ओर ब्रिटिशा बे अत्यधिक हित मे हुआ जिससे वे नैंपोलियन की महा द्वीपीय व्यवस्था का विरोध कर सके, वहा दूसरी ओर भारतीयों का इससे शोपण भी हुआ । भारत का कच्चा माल इग्लड ले जाया जाने लगा जबकि उस देश का पक्का माल भारत के बाजारा म भरा जाने लगा। लकाशायर के उद्योग- पति लाखा म यहा आन लगे और भारत का उद्योग, लडखडाने, नष्ट होने और मरने लगा । भारत पर एक अक्थनीय विपत्ति आ गई जिससे वह गरीबी और भसहामता की मति हो गया । इग्नैड की ईसाई मिशनरियो को स्वत तरता पुवक इस देश मे आने और बसने की छूट मिल गईं। इस दृष्टि से तो इसका अच्छा प्रभाव पडा कि बहुत से मिशनरी स्कूल और कालेज भारतीया की शिक्षा वे लिए खाल दिए गये। पर इसका एक दुष्प्रभाव यह हुआ कि ये मिशनरियमा शीघ्र ही विशेष भाव से ग्रस्त हो गईं और भारतीय परपराआ को उल्ठा सीधा ही नही कहने लगी ,बल्कि वबर की सज्ञा देने लगी। इससे अग्रेजा और भारतीयों बे' बीच जातीय शत्रु र




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