जैनतत्त्वादर्श पूर्वार्ध | Jaintattvadarsh Purwardh
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
640
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(प)
दी या खड़ी बोली! जिस में आापरूल उपन्याघत, गढप,
नाटक आदि लिये जाते हैं, तथा जो पत्र पत्तिकाओं में “ययहल
होती है, का जन्म आज्ञ से फोई डेढ सौ रसस पहले हुआ।
হরে ঈ নিহির আত ঘহিভিওন रूप तो अभी बीसर्ची
सदी में धारण फ़िया है ।
(२) तीख चालीस बरस पहले यू० पी०, पज्ञाय और
मास्या में खाघु मद्दामा अपना उपदेश ददुस्तानी भाषा
में देते ये, जिस में ये अपनी रुचि या परिस्थिति (शेक्षा,
भ्रमण, देश, परिपदरा आदि) के अज्ुसार दूसरी भाषाओं
का सिश्रण कर देते थे । भव कभी उन को गद्य लिपना द्वोता
था तो भी वे इसी भापा में लिखते थे । शिक्षा के अचार
से अप इस प्रकार की ,मिश्रित हिंदी का व्यवद्वार घटता
जाता है ।
১ रा
(३) मद्दाराज साहिय ने प्रारम्भिक शिक्ता पञ्माय में
पाई थी परन्तु उच्च शित्ता के लिये उन्हें जयपुर, आगरा
अजमेर, जोधपुर आदि नगरों देर नक হহুলা ঘন্থা
इपेताम्यर संप्रदाय फा जोर मास्याड़ गुजरात में दोने मे
अन्य वेशों में रहने वाले श्येताम्वर जैनों की भाषा में भी
गुजराती मारवाडी के प्रचुर प्रयोग मिलते हैं ।
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~ # देखिये--वष्ठनिर्णय आसाद्-जीवन नरिप ५०--४६
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