मनोविज्ञान का परिचय भाग 1 | Manovigyan Ka Parichay Bhag 1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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রে দলা “~~----~--------- ~~ ------ - ------------- ------ ------------ का रंग आदि में ही भिन्‍न नहीं होते बल्कि मनोवैज्ञानिक विशेषताओं; जैसे - बुद्धि, व्यक्तित्व, स्वभाव, (धफल ण€(), रुचियों एवं मूल्यो आदि मे भी एक-दूसरे से भिन्त होते हैं। इन भिन्‍नताओं को समझना अपनेआप में तो महत्त्वपूर्ण होता ही है परंतु निर्देशन, परामर्श एवं विभिन्‍न नौकरियों के लिए व्यक्तियों के चयन आदि में भी इनकी विशेष भूमिका होती है। अनुसंधानकर्ताओं ने इन क्षेत्रों पर विशेष ध्यान दिया है तथा इनके अध्ययन के लिए अनेक सिद्धांतों एवं मापकों का विकास किया है। इसी तरह मनोवैज्ञानिकों ने असामान्य व्यवहार तथा जीवन के विभिन्न क्षेत्रो; जैसे ~ विद्यालय, व्यापारिक संगठन त्तथा अस्पताल आदि भै मनोविज्ञान कं उपयोग पर भी ध्यान दिया है। आगे के अनुभाग में जहाँ मनोविज्ञान कं विशिष्ट क्षेत्रों की चर्चा की गई है आप मनोविज्ञान के प्रमुख उपयोगी क्षेत्रों से परिचित हो सकेंगे। एक आधुनिक विषय के रूप में मनोविज्ञान का ` विकास दार्शनिक आधार मानसिक जगत को समझने के प्रयास का बड़ा लंबा इतिहास है। शायद इसका आरंभ धरती पर मनुष्यो के अवतरण के साथ ही हुआ होगा। ज्ञात साक्ष्यों से यह स्पष्ट प्रमाण मिलता है किं इस तरह की जिज्ञासा भारतीय चिंतन का प्रमुख विषय ` रही हे । यह मनन ओर अनुभव कं आधार पर आत्म या स्व (ऽश) के अध्ययन से जुडा था भारतीय चिंतक जीवन ओर ब्रह्मांड के प्रति एक समग्र दृष्टि में रुचि रखते थे | चेतना का स्वरूप, ब्रहमांड में चेतना का विस्तार, चेतना के संचालन की प्रक्रिया तथा चेतना के परिणामों के बारे में उनकी रुचि थी। वे समस्याओं को समझने में प्रज्षण और अनुभव (प्रत्यक्ष), तर्क (अनुमान), प्रज्ञा एवं शब्द प्रमाण का उपयोग करते थे। न्याय, मीमांसा, वेदांत, योग, सांख्य, बोद्ध, जैन, चार्वाक तथा सूफी मतों में स्वास्थ्य, श्रेष्ठ जीवन, मूल्यों और प्रेरणाओं जैसे मनोवैज्ञानिक विषयों पर विस्तृत विचार-विमर्श प्राप्त होता है | जैसा कि गार्डनर मर्फी ने कहा है कि साक्षर जगत के मनोविज्ञान में भारतीय मनोविज्ञान प्रथम असाधारण रूप से महत्त्वपूर्ण कदम था | वह इसे प्रथम बड़ी मनोवैज्ञानिक चिंतन व्यवस्था स्वीकार करते हैं। आत्मन्‌, संज्ञानात्मक दशाएं, भावात्मक दशाएं, स्वप्न, चेतना, मन तथा शरीर का संबंध मानसिक प्रक्रियाएं (संज्ञान, प्रत्यक्षीकरण, भ्रम, अवधान, तर्क), ` मानसिक स्वास्थ्य तथा उपयोगी ज्ञान, इन सभी विषयों पर चर्चा हुई है। किंतु इन सब पर अधिक ध्यान नहीं दिया गया और कुछ दिनों पहले तक आधुनिक मनोविज्ञान के साथ इसका संबंध समझने का प्रयास नहीं किया गया | विगत वर्षों में कुछ विद्वानों ने इस प्रकार के कार्यों में रुचि लेना आरंभ किया है। एक विषय के रूप में आधुनिक मनोविज्ञान का पाश्चात्य दर्शन में आरंभ हुआ और बाद में इससे स्वतंत्र हो गया। प्राचीन यूनान देश (ग्रीस) में विकसित दार्शनिक दृष्टिकोणों में दो प्रमुख विचारधाराएं उभरीं : इद्रियानुभविक (िणुभा?6व) तथा तर्कवादी (1२०००) | अरस्तू के नेतृत्व मे इंद्रियानुमविक दृष्टि ने अवयववाद (छाल्रलणअ) की विचारधारा को आगे बढाया सरल शब्दौ मै कटं तो इसका तात्पर्य यद है कि किसी जटिल चीज को उसके अवयवों में बांटकर समझना | मनोविज्ञान विषय मेँ इस दृष्टिकोण को अपनाते हुए मानस (५४४०) को संवेदना (६65०) तथा साहचर्य (58060) के अवयवो से निर्मित देखा जाने लगा। साहचर्यं संवेदना पर आधारित माने गए] प्लेटो ने इद्रियानुभविक दृष्टि के विपरीत तर्कवादी दृष्टि को ज्ञान के प्रति उपयुक्त दृष्टि माना | उनके अनुसार ज्ञान पाने के लिए तर्क उतना ही वैध है जितना कि ज्ञानेद्रियों पर आधारित प्रत्यक्षीकरण। संग्राहक ($०1४०५ए1०००ए०॥०) ज्ञान के लिए अच्छे स्रोत नहीं माने गए | जागरण काल के दौरान फ्रांस में रेने देकार्त एक प्रमुख विचारक के रूप में उभरा जिसने आधुनिक विज्ञान का मार्ग प्रशस्त किया । उसने कहा : भ सोचता हु. इसलिए हू | उसने यह विचार दिया कि मानस तथा शरीर भिन्न-भिन्न है पर वे एकं दूसरे के साथ अंतक्रिया करते है) उसने यह भी कहा कि पशुओं में आत्मा (500) नहीं होती और इसीलिए वे यत्रो की तरह काम करते हैं। जैविक आधार आधुनिक ओषधि विज्ञान की आधारमूमि 1800 से 1870 के बीच तैयार हुई थी । जोहांस मूलर एवं क्लाउडे बर्नार्ड के प्रायोगिक शरीरविज्ञान के कार्यो से दैहिक मनोविज्ञान का उदय हअ । मूलर का विचारे थां कि मनुष्य अपनी दुनिया के बारे मे उदृदीपकों की सहायता से अप्रत्यक्ष ठंग से जानता है। उद्दीपकों से हमारे संग्राहकों और नाड़ियों में तंत्रिकावेग उत्पन्न होते हैं। इसी समय मार्शल हाल, पियरे फलोरेन्स एवं पाल ब्रोका ने मस्तिष्क के विभिन्‍न कार्यों का अध्ययन किया एवं उनकी स्थानगत पहचान की | इन लोगों ने प्रायोगिक मनोविज्ञान के जन्म के लिए आवश्यक आधारभूमि का निर्माण किया।




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