अनेकान्त | Anekant
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23 MB
कुल पष्ठ :
429
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about जुगल किशोर मुख्तार - Jugal Kishor Mukhtaar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वष १४ [
अभ्यागत या पाहुनेके आजाने पर भी उसे नहीं
खिलाता था, में ह छिपाकर रह जाता था। इमीसे
पत्नीसे रोजाना कलह होती थी जेसा फि कविकी
निम्न पंक्तियोंसे प्रकट हैः--
भूठ कथन नित खाद लग्बे लेखो नित मूओ,
झूठ सदा सहु करे भूठु नहु दोइ अपूटो |
कूटी शेले साचि कृटे कगडे निस्य उपावै,
जहि तदि बात वित्त सि धूतिधनु धर्मि स्याव ।
लोभ कौल यो चेते न चित्ति जो कद्दि जे सोड़े खबरों,
धनकाज शूट बोले कृपणशु তু जनम लाधो गव ॥९
कदे न खाद् तंबोलु मरघु भोजनु नहि भक्तै,
कदे न कापड नवा पदिरि काया धुल रक्षसे ।
कदे न सिर में तेलु घलि मलि मूरख न्दर,
कदे न चंदन चरतं अंगि श्रवोर लगाव |
पेषणो कदे देखे नहीं अ्रवणु न सुदा गोन रमु,
घर घरिणि कह्टे इम कंत स्यां दह काइ दीन्द्रों न यसु॥६
बह देण खाण रखचे न किवें दुबे करद्दिदिनिकलदअर्तत
संगी भतीजी भुवा वदिणि भाणिजी ল ওয়ান”)
रहे स्सदा मांडि माप म्पोतो जव श्रावं |
पाहो सगो श्रायो सुखे रह चिप्पौ धरु ह राखिकर ।
जिव जाद तित्रहि परिनीष्तरे यों धनुसच्या कृपण नर,
कृपण की पत्नी, जब नगर की दूसरी स्त्रियां
को अच्छा खाते-पीते और अच्छे वस्त्र पहिनते ओर
घम-कम का साधन करते देखती ता अपने पतिस
भी वेसा हीं करन को कहती इस पर दनांमं
कलह हो जाती थी। तब वह सांचती हूँ कि मेने
पूवमं एसा स्या पाप क्रिया ह? जिसस मुभे एसे
द्मत्यन्त कृपण पतिका समागम मिला। क्या मेंने
कभी कुदेवकी पूजा की, सुगुरू साधुआंकी निन्दा
का, कभी भ्ूठ बाला, दया न पाली, रात्रिम भाजन
ক্ষিঘা, থা লক্ষী स'र्याका अपलाप किया, मालूम
नहीं सेरे किस पापका उदय हआ श्ससे मे
ऐसे क्पणपतिके पाले पड़ना पड़ा, जा न खाबे न
खच करने दे, निरन्तर लड़ता ही रहता है ।
एकं द्नि पत्नीने सना फ गिरनारको यात्रा
करनेके लिये संघ जा रहा है | तब उसने रात्रिम
हाथ जोड़कर ौसते हुए संघयाद्राका उल्लेग्व किया
ओर कहा कि सब लोग संघके साथ गिरनार और
कविवर ठकुरसी और उनकी कृतिया
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১৯৯ ~. - |
शत्रु जयकी यात्राके लिये जा रहे हैं। वहाँ नेमि-
जिनेन्द्रकी वन्दना करेंग, जिन्हांने राजमतीको छोड
दिया था। वे व्न्दना पूजा कर अपना जन्म सफंल
करेंगे । जिससे वे पशु और नरफ़्गतिमें न जायगे।
किन्तु अमर पद प्राप्त करेंगे । अतः: आप भी
चलिय | इस बातको सनकर कृपणके म/तकम सिल-
वट पड़ गर वह बोला कि क्या तू बावली हई है
जो धन ग्वरचनकी तेरी वुद्धि हई । मैन धन चोरीसे
नहीं लिया आर न पड़ा हुआ पाया, दिन-रात नीं
भूख प्यासकी बेदना सही, बढ़े दुःखसे उसको शभ्राप्त
किया है, अतः खरचनेक्री बात अब मुहसे न
निकालना |
तब पत्नी बोली हे नाथ ! लक्ष्मी तो बिजलीके
समान चंचला है । जिनके पास अटूट धन ओर
नवनिधि थी, उनके साथ भी घन नहीं गया, केवल
जिन्होंने सचय किया उन्होंने उसे पापाण बनाया,
जिन्होंने धमं-कायेमें खवये किया उनका जीवन
सफल हुआ | इसलिये अवसर नहीं चुकना चाहिए,
नहीं मालूम किन पुर्य परिणामोंसे अनन्त धन
मिल जाथ । तव कृपण कहता हैं कि तु इसका भेद
नहीं जानती, पसे विना आज कोई अपना नहीं है ।
धनके बिना राजा हरिश्चन्द्रने अपनी पत्नीकों बेचा
था | तब पत्नी कहती ह कि तमने दाता ओर दानको
महत्ता नहीं समभी | देखो, संसारमं॑ राजा कर
ओर विक्रमादित्यस दानी राजा हा गये हैं, सूमका
कोई नाम नहीं लेता जा नि-प्रह और सन््ताषी दै,
वह निधन होकर भी सुखौ हे, किन्तु जो धनवान
होकर भी चाह-दाहमे जलता रहता दै बह मदा
दुःग्वी है। मे किसीकी होड़ नहीं करती, पर पुख्य-
कर्म में धनका लगाना अच्छा ही है | जिसने केवल
धन संचय किया, किन्तु म्व-परके उ+कारसमें नहीं
लगाया वह चेतन होकर भी अचेतन जेसा है जेसे
उसे सपने डस लिया हो ।
इतना सुनकर पण गुम्सेसे भर गया और
उठकर बाहर चला गया । तब ॒रास्तेम उसे एक
पुराना मित्र मिज्ञा। उसने ऋृपणसे पृछा मित्र !
आज तेरा मन म्लान क्यों है ? नया तुम्हारा धन
राजाने छीन लिया या घरमें चोर आगये, या বম
क
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