ऋग्वेदीय ब्राह्मणों के आधार पर वैदिक संस्कृति का एक अध्ययन | Rigvediy Bhrahamho Ke Adhar Per Vaideek Sanskriti Ka Ak Adyayan

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Rigvediy Bhrahamho Ke Adhar Per Vaideek Sanskriti Ka Ak Adyayan by सौभाग्यवती सिंह - Saubhagyawati Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मन्ड अर्‌ ब्रॉतण शब्दों काया परिचय मन्त्र -» पर्वाक्त 'मन्ऋाधणयौवैेदनामवैयः' के अन्तर्गत कहे गए मन्त्र जाए ब्राहणः शव्द से चया अभ्परित › यही यदहं पिका रणाय हे । निरुक्ते याक नै दिक ई দল জলে ই দন্ড উহ | अमन) ~अ -टिन्पण क्ते हुए डुर्गाचार्य ने ऋापर छिंसा है कि मन्त्र मनन किए जाने से मन्त्र कहलाते हैं । मननकरता इनके छपरा वध्यात्म अधिदेव तथा अधियज्ञ का मनन करते 8, यही क्षनका' मन्ज्त्व हैं । ये छन्दीमय होते हैं । টাছি০৩০ में मेकदौनल और काथ में तथा हाण्सूयका ने वैदिक कौश में ভিজা &ঃ मनी (पीवचाला,चिन्तन करना) धातु से मन्श्न शब्द गनिष्यन्त हुआ | নল্দ शब्द छ तथा परवता कपठ में गायकों के सूजना त्मक फघिचारों के उत्पादन के प्म पक्त कवचौ ই । ब्रास्ण में इस शब्द का प्रणियाँ का पथात्पयक्ष और गधा त्पक তছিতযী ক चिर मियमित छथ से प्रयोग कयि भया ह } वैकिकि कान्कर्हन्छ क भमिका में मप ने तथा देत आए० में कीय ने भी यहा विकार व्यक्त কিনা ছু 1 नैकटौनछ मे अपमीः वेदिक ग्गमर ये पय अथष गध दोनों हं। प्रकार की सहिताओों की समस्त मन्च सामग्री की इवे अन्तत एवा हे । १ -निरुक्त ७.१२ मन्त्राः मननात्‌ २ तन्व ~ मन्त्रीमिननातुरम्यी छ्राध्यात्मा, ,, वायुच्चरति




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