ऋग्वेद के देवशास्त्र सम्बन्धी आश्विन सूक्तों का आलोचनात्मक अध्ययन | Rigved Ke Devshastr Samabandhi Aashivan Sutko Ka Aalochnatmak Adhyayan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
138 MB
कुल पष्ठ :
566
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)उपयुक्त परिधि के मध्य ही सम्पूर्ण शोध कार्य का विस्तार निहित ই |
शोध कार्य का प्रयोजन
पूर्वॉल्लि'खित चतुर्धा' वगीकरणोँ के आधार पर ही शोध्कार्य क्यो सम्पन्न
किया गया, यह पिज्ञातरा मानतपत्ल पर उद्दैलित होना ल््वाभाविक ही है |
मैं यहाँ यह स्पष्ट कर देना चाहँगी कि इत्त दिशा में शोध करके कौन से प्रयोजन
'सिद्व हो सकते हैं । उनका विल्तुत विवरण निम्नलिखित है :-
|. दैवशशास्त्रीय अश्रिवन् सूक्तौः का अध्ययन करने ते उन सक्ती में प्रयुक्त पुराक्थाओं
के माध्यम উ ভা अग्रिवनीं के स्वस्य के घिभिन्न पहलुओं से अवगत होने का
अवसर प्राप्त हुआ , जितसे कतिपय उपयोगी तथ्य उभरकर सामने आये। चैते -
उनके उत्पत्ति ते सम्बन्धित कथाओं तथा अन्य कया के माध्यम तै
तत्कालीन भौगोलिक दशा का ज्ञान प्राण्त होता है । मन्त्री के गहन अध्ययन
ते हमें भौगी लिक स्थिति, सूर्य के परिकुमा का मार्ग, उसकी प्रुछरता तथा
वष्याकाल की अवधि का ज्ञान प्राप्त करने में सहायता म्विती हैं । कथा
प्म के दारा यह सिद्ध होता है कि पहले सूर्य का तेज आर भी एुछर পা,
जी धीरे धीरे कम होता जा रहा है। मन्त्रं र्ये पराप्त उद्धरण ढे आधार
पर अधिवनों को प्रातः पठरकाश के साथ समीकृत करने का प्रयात्त किया गया
है । कत्तिपय पिद्वानों ने इन्हें नक्षत्र माड़ल के दो तारों का प्रतिरृ्प माना
है। इन मम्त्रों के अध्ययन के फ्लस्वरूप नद्ठन्नविज्ञान के अन्तर्गत चल रहे अनु-
सन्धान को नहीँ दिशा म्लिगी |
2. दिव्य উর ক ভন में अधिवनों को जी स्वव्य दृष्टिगोचर हीता है,वह सवाधिक '
महत्वपूर्ण है । दिनय वैज्ञ के र्प में उनकी प्रख्याति न केवल वैदिक साहित्य मे,
अपितु वैदिकों त्तर ताहित्य में भी देखी जाती है । यही स्वस््य सवा'धिक
तिकमित भी है । अशिवर्नां के द्वारा विभिन्न पुकार के व्याधियाँ से गल्त
मानवाँ का उपचार कर उन्हें दीघ्राँयु प्रदान करने की अनेक कथा वैदिक
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