उत्तराखंड की यात्रा | Uttrakhand Ki Yatra

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Book Image : उत्तराखंड की यात्रा  - Uttrakhand Ki Yatra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हरिद्वार 5 हेरिहार से चार किलोमीटर दूर्‌ स्थित कनखल मे दक्षेश्वर महदेव मंदिर है। कहा जाता है कि सती के पिता दक्ष प्रजापति मे धरां महायज्ञ किया था] दक्ष अपने दामाद भगवान्‌ शकर से बहुत असंतुष्ट रहते ये । अतः उन्होने उन्हं उस यज्ञ में नहीं बुलाया । शकर के मता करने पर भी सत्ती अपने पिता के महायज्ञ मे पहुँची । पर दक्ष प्रजापति ने उनका भी अपमान किया | इस पर सती ने उसी यज्ञ-क्‌ ड मे कुदकर अपने प्राणो की आहुति दे दी। जब यह खबर शिवजी को गिली, तो वे कोघाभिमूत हो उठे1 उनके गणो ने यज्ञ को विध्वस कर दिया एवं दक्ष का सिर काट डाला । भगवाच्‌ विष्णु के प्रयत्न से शकर का ऋषध शांत हुआ । इसकी याद में इस जगह पर दक्षेश्वर महादेव मदिर की स्थापना की गई है। उसके समीप ही सती-ताल भी है। यहाँ दक्ष-यज्ञ को कहानी नित्रों ढारा मंदिर मे अकित है । यह दक्ष-मदिर पचतीर्थों मे से एक माता जाता है । हरिद्रार मे स्थित विल्वं पवत पर मनसा देवी का मंदिर है। चढ़ाई बड़ी कठिन है, यद्यपि सीढ़ियाँ बनी हुई है। यदि प्रातःकाल चढ़ेगे तो चढ़ते में कठिनाई महसूस न होगी । मै अपने परिवार के साथ सबेरे ही पहाड पर चढा था। ऊपर से हरिद्वार का दुय अति सुन्दर दीख पड़ता है। अब रज्जु-मार्ग बन जाने से यहाँ पहुँचता सरत हो गया है। নীল ঘন নহ चंडी देवी का मंदिर है जिसका तिर्माण जम्मू के महाराज सरजीत सिंह ने सन्‌ 1129 ई० गे कराया था। गंगा को पार कर मदिर जाना पडता दै। वरहो गौरीणकर, नीलेश्वर महादेष तथा हनूमान जी को माता अजनादेवीका मदिर ह) हरिद्वार के पास एक ओर भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स का बहुत बड़ा सर- कारी कारखाना है जिसमें विद्युत उत्पादन के विदश्ञाल उपकरण तंयार किए जाते है दूरी ओर भऔषधि-निर्माण का नवीनतम केन्द्र है जो जीवनदायिनी दवाओं के निर्माण के लिए प्रसिद्ध है। इत दोतों संस्थाओं की स्थापना से हरि- द्वार को नवीन महत्त्व मिल गया है और यह स्थान শামি मान्यता और वैज्ञानिक प्राति का अद्भुत संगम हो गया है । मनुष्य समाज मे सब जगह अच्छे-बुरे दोनों प्रकार के व्यवित मिलते हैं। जी अच्छे हैं, हर फहीं अच्छे होते हैं | बुरों के लिए तो तीर्थ की पवित्रता का भी कोई महत्व नही । इसका कटु अनुभव मुके पहते ही'दिन हो गया जबकि स्नान करते समय किसी ने बडी चतुराई से मेरे बंग मे से नो सौ रुपये के नोट निकाल लिए । इस स्थिति में आगे की यात्रा की व्यवस्था करने में बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ा । पर इससे यह सबक मिला कि यात्रा में पूरी सावधानी ज रतनी चाहिए ।




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