हिंदी गद्यशैली का विकास | Hindi Gadhya Shali Ka Vikash

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Hindi Gadhya Shali Ka Vikash by जगन्नाथ प्रसाद शर्मा - Jagannath Prasad Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १४५ ) व्वलता है । इस दृष्टि से भी जब विचार किया गया तब यही निश्चित हुआ कि अँँगरेज तथा उस समय के पढ़े लिखें हिंदू मुसलमान सभी खड़ी बोली को स्वीकार कर सकते हैं । उसी में सबको सरलता रहेगी शोर वही शीघ्रता से व्यापक बन सकेगी । सारांश यह कि खड़ी बोली को स्थान देने के कई कारण प्रस्तुत किवी भी साहित्य के श्ारंमिक काल में एक अवस्था ऐसी रहती हैं कि साधारण विषय को ही लेकर चलना पड़ता है । उस समय न तो भाषा में भावप्रकाशन की बलिष्ट शक्ति रहती है श्रौर न लेखकों में ही व्यंजनाशक्ति का सम्परकू प्राहुर्माव हुआ रहता है । श्रतः यह स्वाभाविक है कि गद्य साहित्य का समारंभ कथा कहानी से हो । उस समय साहित्योन्नति के समारं॑भ का कारण केवल मनोविनोद ही होता है । वह समय उच्च श्रौर मददत्‌ विच्दारों के गवेबणापूण चिंतन का नहीं होता श्रौर उस समय तथ्यातथ्यविवेचन श्रसंभव होता हैं । उस काल में तो यहीं विचार करना रहता है कि किसी ग्रकार लोग पठन पाठन के श्रम्यासी हों । यही श्वस्था हमारे गद्य के इस विकासकाल में थी । यहीं हमें मुंशी सदा (सुखसागर) श्रौर इंशाश्रल्लाह खाँ दिखाई पढ़ते हैं। एक कथा का रूप लेकर चले श्रौर दूसरे ने कहानी लिखी | _ व्बलती भाषा में इस संमयं इन दो लेखकों की कृपा से दो वर्गों को पढ़ने का. कुछ उपादान प्राप्त हुआ । घर्मसमाज को धर्म संबंधी विचार सिलें' श्रौर जनसाधारण को मनोविनोद के लिये एक किस्सा । जैसे दोनों के विषय हैं. वैसी ही उनकी भाषा भी है । एक में भाषा शांत संचरण करती हुई मिलती . है तो दूसरे में उछल कूद का बोलबाला है । सुंदरी जी की भाषा में , के सुंदर तर्सम शब्दों के साथ पुराना पंडिताफपन हे तो खाँ साहब में अरबी फारसी के साधारण दाब्दसमुदाय के साथ साथ वाक्यरचना का ढंग भी दिखाई देता है । उदादरणु देखिए:-- व _.. “जो सत्य बात होय उसे कहा चाहिए, को बुरा माने कि शला, _ माने ! विद्या इस हेतु पढ़ते हैं कि तात्पर्य इसका जो सत्तोवृत्ति है वह य्राप्त हो श्रौर उससे निज स्वरूप में लय हृजिए । इस हेतु नहीं पढ़ते हैं _ कि चतुराई की बातें कह के लोगों को बहकाइए श्रौर फुसलाइए श्ौर श्रसत्य ... छिपाइए: व्यभिचार कोजिए श्ौर ,सुरापान कीजिए, . श्ौर धनद्रव्य इकठौरा




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