राज्य प्रबंध शिक्षा | Rajaya Prabandh Shiksha

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Rajaya Prabandh Shiksha by टी० माधवराव - T. Madhavraoरामचंद्र शुक्ल - Ramchandra Shukla

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रामचंद्र शुक्ल - Ramchandra Shukla

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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{९1 शनियों के सेषक्षो बा दासों के दाच्च লী यहो ইলা ভান । . জত্বহাশ-ইঘ শীক্ষতী के छाटे छोटे अपराधों के बहुल ज्यादह ध्यान में मन लाना चाहिये आर न उनके लिए उन्हें कडी कड़ी सज़ाय देनो चाहिए। सब नोकरों से कुछ न कुछ अपराध है। हो जाया करते हैँ । ध्यान इस बात का रखना चाहिए कि वे शेसे छेोठे अपराधों से आगे न बढ़ने पांवें । उनका दृण्ड-यदि कोई महल का सेक रेखा अचरा करे लिपसे उसके दण्ड देना आवश्यक हा ता भौ उचित यही है कि उसके दण्ड के लिए स्वयं महाराज জা कारधषाई न करें। दंड या तो महल का कोदे बड़ा प्रसर दे या अदालत दे, जेघा मामला डे । यह इस लिय है जिसमें महाराज से व्यथ किसी के ट्ष न हने परे) भूल श्वत्य-महल में जहां तक हे पृश्लनी नोकरों के रखना अच्छा हो हे क्योंकि उन्हें राजपरिवार के साथ अधिक खेह रहता हे । यदि कोई बढ़ा नोक्र झर जाय; अधवा रोग वा बुढ़ापे आदि के कारण अशक्त हो जाय तो के लड़के, भ है था ओर कछिछी संबंधी के জ্বীন জ্বাল ই देना अच्छ' हे | पर राज्य के कमेचारो नियक्ता करने में इस पेलुक सिद्धान्त पर चलना सवेथा अनुचित हे क्योकि राज्य के कामे में विशेष गणों को आवश्यकता रहतो हे । ভা জা कोई राज्य सम्बन्धी क्वाय्ये- शेसे भो हेते हं मे इनके य्य गृ अ লন करने बाले दे वंसते में




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