आदिपुराण | Aadipuran
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
119 MB
कुल पष्ठ :
812
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२ आदिपुराणम्
३, 'प! प्रति--यह प्रति-पं० नेमिचद्धजी ज्योतिषाचाय के सत्प्रयत्तके द्वारा जैन सरस्वतीभवन आरासे
प्राप्त हुई है । देवनागरी लिपिमें काली और लाछ स्याही-दारा कागजपर लिखी गयी है। इसकी कुल पत्र-
संख्या ३०५ है। प्रत्येक पत्रपर १३ पंक्तियाँ हैं और प्रत्येक पंक्तिमें ४२ से लेकर ४६ तक कक्षर हैं। पत्रों-
की लम्बाई १४४ इंच और चौड़ाई ६ इंच है। प्रारम्भके कितने ही पत्रोंके बीच-बीचके अंश नष्ट हूं
गये हैं। मालूम होता है कि स्थाहीपं कोशीसका प्रयोग अधिक किया गया है जिसकी तेजीसे कागज
गलकर नष्ट हो गया है । यह प्रति सुवाच्य तो है परन्तु कुछ अशुद्ध भी है। शा, ष, स, व, बे, न ओर भ में
प्रायः कोई भेद नहीं किया गया है। प्रत्येक पत्रपर ऊपर-नीचे और बगलमें आवश्यक टिप्पण दिये गये
हैं। कितने ही टिप्पण 'त' प्रतिके टिप्पणोंसे अक्षरशः मिलते हैं। इसकी लिपि १७३५ संबत्में हुई
है । सम्भवतः यह संबत् विक्रमसंवत् होगा; क्योंकि उत्तर भारतमें यही संबत अधिकतर लिखा जाता
रहा है । पुस्तककी अन्तिम प्रशस्ति इस प्रकार है:
'संचत् १७३७ वर्ष अगहणमासे कृष्णपक्षे द्वादशीशुक्रवासरे अपराहिकवेछा ।
“जी हरिक्रष्ण अविनाशी ब्ह्यश्नीनिपुण श्रीजह्मचक्रवर्तिराज्यप्रवत्तमाने गेब दरूबछूबाहनविद्यौध-
दष्टधनघटा जिदारणसाहसीक स्लेच्छनिव हथिध्वंसन महाबली ब्रह्माकी बी शी. गेवीछत्रन्रयर्मंडित सिंहासन
अमरमं इलीसेब्यमानसहलकिरणवत् महातेजभासुर नृूपमणि मस्तिकस्लुकुटसिद्धशारदपरमेश्वर-परमप्रीति
उर ज्ञानध्यानमंडितसुनरेश्वरा: । श्रीहररिकृष्णतरोजराजराजित परदर्ंकजसेवितमघुकर सुभववचनभ्ंकृत
तनु अंकज । यह पुरणलिखो पुरांणतिन शुभशु मकीरतिके पठन को । जगमगतु जगम निज सुअटछ क्षिप्य-
गिरघर परसरामके कथत को । झुभ भवतु मज्ञरू | श्री रसतु । कह्याण मस्तु ।”!
इसी पुस्तकके प्रारम्भमें एक कोरे पतन्रके बाँयी ओर लिखा है कि :
“पुराणमिर्द सुनीश्वरदासेव आरानासनगरे श्रोपाइवेजिनमन्दिरे दत्त स्थापित অ भब्यजीव-
पठनाथ । भह्गं भूयात् |! ह
इस पुस्तकका सांकेतिक नाम पा है ।
४. अ' प्रति--यह प्रति जैन सिद्धाग्तभवन आराकी है। इसमें कुछ पत्र २५८ हैं । प्रत्येक पत्रका
विस्तार१२४ » ६६ इंच है। प्रत्येक पत्रपर १५ से १८ तक पंवितर्या हैं और प्रत्येक पंक्तिमें ३८ से ४ १
तक अक्षर हैं । लिपि सुवाच्य है। देवनागरी छिप्रिमें काठी और लाल स्याहीसे लिखी हुई है । भशुद्ध बहुत है ।
इलोकोंके नम्बर भी प्राय: गड़बड़ हैं । श, ष, स, নল) গা और व, ब में कोई विवेकं नहीं रखा गया है।
यह कब लिखी गयी ? किसने लिखी ? इसका कुछ पता नहीं चलता । कहीं-कहीं कुछ खास शब्दोंके टिप्पण
भी हैं । इसके ठेखक संसकृतज्न नहीं मासूम होते । पुस्तकके अन्तिम पत्रके चीचे पतली कलछमसे निम्नलिखित
शब्द लिखे हूँ
1
१, यहाँ निम्नांकित षटपदवृतत है जो लिपिकर्ताकी कृपासे गद्यरूप हो गया है
“जपसणिमस्तकमुकुटसिद्धशारदपरमेदवर ।
रम प्रीति उर क्तानध्यानमण्डितः सुनरेदवर ।
श्री हरि्घष्णसरोजराजराजितपदपंकज्ञ
सेवितमघुकर सुमट्वचनझकृत तनु अंकल ॥ .
ह पूरण किसी पुराण तिन छम कीरतिके पटनक्रौ ।
ज्ञगमगतु जगम निज सुअटरू रिष्य गिरिधर परशरामके कथनको ।''
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