बौद्ध चर्य्या पद्धति | Baudh Charyy Padhati

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Baudh Charyy Padhati by भदन्त बोधानन्द - Bhadant Bodhanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ৩ ) महात्माओं की मुहूत भर की हुईं पूजा सो वर्ष तक की गई श्रग्निचयों तथा सी वर्ष तक किए गये हवन से श्रष्ठ॒ होती ই। বব आदि के निमित्त भौतिक सामग्री जुठानी पड़ती है और उत्तमोत्तम पुष्टिकर खाद्य सामग्री श्रग्नि में जलाई जाती ই, जिसमें एक प्रकार से अ्रनर्थ ओर हिंसा ही होती है) परन्तु पूजा-यश्व के लिए, यदि मनते श्रद्धा हे, अध्यात्म-समपंण का भाष है तो पर्यात ই। शील- बौद्ध त्रिशस्ण ॐ अटल विश्वासी का शील हो मूलधन तथा शील ही मूल सबल है । शील का च्रथं सदाचार से है। बौद्ध सदाचार में आडबंर को बिल्कुल स्थान नहीं ই। मगवान्‌ ने कहा हैः-- ने नग्गचरिया न जठा न पंका, नाना सक्रा थंडिल सायिका वा। रजोवजल्लं उक्वुटिकप्पधानं, सोधेन्ति मच्चं म्रवितिण्ण कङ्क ॥ घम्मपद १०1१३ जिसमें श्राकाक्षाए' बनी हुई हैं वह चाहे नंगा रहें, चाहे जय बढ़ाए, चाहे कीचड़ लपेटे, चादे उपवास करे, चाहे ज्ञमीन पर सोये, নাই धूल लपेटे और चाह उकंड्ू बेठे, पर उसकी शुद्धि नहीं होती । श्रष्ली शुद्धि ते शील पालन से ही होती है| विश्ुद्धिमग्ग में कडा हैः-- न गंगा यमुना चापि स्षरभू वा सरस्वती । निन्नमा वाचिरवती मही चापि महानदी ॥ सक्कूणन्ति विसोधेतु तं सलं इध पाणिनं । विसौधयति स्त्तानं यं वे सीलजलं मलं ॥ प्राणियों के जिस मल का शील-रूपी जल धो डालता है, उसे




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