चिकोटी | Chikoti

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Chikoti by इन्द्र शंकर मिश्र - Indra Shankar Mishr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१२९ दी हैं । प्रस्तुत पुस्तक के प्रणेता उन्दी मिने-चुनों में से हैं | स्मरण रहे कि ब्याय ( सदयर ) और वक्ता ( आयरनी ) स्वतः हलूकी चीजे हैं, उनको गुरुतर उपयोग में छे आने के छिए कठिन कौशरू की अपेक्षा होती है | ऐसा कठिन कौशल अस्लुत लेखक को प्राप्त है । आधुनिक विचारधाराओं को इन्होंने बड़े कटकीने से, बहुत ब्यंगत्मक ढंग से, अपने इन रेखामात्र निरबंधों में पवाहित होने दिया है । सामाजिक, राजनीतिक या साहित्यिक प्रचलनों की बड़ी चुटीली चुटकी ली गई है, बड़ी संवेदनात्मक 'चिकोटी' काटी गई है! हास्य स्वस्थ भी होता है और पररथ भी। कोई खतः हँसता भी है और दूसरों को हँसाता भी है । ये आनंदी-जीब लेखक केवल हँसनेवाले नहीं हैं। स्वतः हँसते भी हैं और दूसरों को हसति भी । उनको भी रदा देते है जनप हँसते रहते हैं। यही इनके हास की सर्वसामान्य विरोषतता है, जो दुर्म भुण है । काटष्य की छाया कहीं नहीं, सबंत्र साक्तिक हास ही छाया है। इसका कारण है इनकी विद्श्वता ( किटि); जिसका अच्छा प्रदर्शन अब्दगत चित्रों की अभिव्यक्ति में दिखाई देता है। आहंभिक निभ म इनकी यह सहज विशेषता यूर्णतया उद्घाटित है | विदगघता सदजा द्वोती है; उत्पाद नहीं | मैं तो कहूँगा कि लेखक इसी विदधता की परिमाजव और परिष्कार करें। इसके विकास से इ तेते निनो के दर्शन होने लग सकते हैं जैसे ५० प्रतापनारायण मिश्र के हुआ करते थे । केवरू द्वास्य का गाढ़ा रंग कुछ रका कृरमा पगा |




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