श्री श्री चैतन्यचरितामृत | Shri Shri Chaitanya Charitamritam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
259 MB
कुल पष्ठ :
367
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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श्री श्रीचेतन्यचरिताभतं
-~ प्रणवौं श्री कृष्णदास ब्रह्मचारी अधिकार, मदनगुपाल
২০ महाभाव पमे प्रथु राधिका गदाधर । हीथ च
টি: मोह से अवोग पर षा करये हं द जम, दीनं सिन्धुं जस ॐ विका
টড সপ _ यह दान चाहों अवगाही गोरक्ृष्ण लोला, जे जे कहौ कविराज राज ष
| प्रथ आज्ञा निरूपण-कवित्त---
रम निज दान हैत गेह व्रषमान नन्द, प्रमट हं करी लीला राधाकृष्ण नाम है |
म हत फेर तेई मदाधर चतन्यह्वं॑व्रगटै है दोड गुल् कय अभिराम है।
দহ निज रूप आप रूप के स्वरूप हू के, कहें भुण रूप प्रेम लीला नित्य धाभहै। .
४ > | श्री गोविन्द जिन्दीं जोग पीरते प्रगट किये, दिये दरसाय जिये जीव पूजे काम है ॥ ७॥ রে
प्रगटे अनंत तेद भरी गुसाई हरीदास बहुधा लड़ाये जिन्हों गोविंद पियारे है |
হলিহহা जिन्हों कविराज राज जू सों ছি चरित कहाये ग्रश्मु जीवनि जियारे है।
वेह पुनि प्रगटे हैं श्री गुसांई नित्यानंद तेई श्री शुसांई सिवराम उजियारे है।
कृष्ण के चरण हियं जिनके विराज सदा श्री गोविंद चरण जू सरस हियारे है ॥ ८॥
तिनि हीको रूप आप श्री युसांदे जगन्नाथ, प्रगट विराजमान जग हितकारी है |
_ „+ गरलीला विना कंसे कृष्ण के स्वरूप जाने, भक्ति हीन दीन जीव चिंता चित धारी है |
~ নাভী दिशा के जीव कंसे भान उदौ जाने, हिये उन मानं प्रषु गुण संखकारीहै। = `
ˆ महाप्रश क्लीला ब्रन माषा कै प्रगट होय जाने जन सवै शष हिये अंधियारी ই হ।
देसे जीव दया देखि दियो है निदेश जिन्हौँ ताते अति मई मेय मति मतवारी है ।
मति मंद मैं जु कहाँ गौरलीला सिंधु कैसे पार है हों याक्रे जिय न विचारी है ।
: हिये ही को राग तान हाथ के प्रताप जेसे काठ सौं गयावें गावें राप बीनाधारीहै। `
. जानि ऐसी आशा अब अबल उछाह बद्यो लोक उपहास हू की लाज सब टारी है ॥१०॥ `
जाही फे विलास वस भये युनि जपी तपी मोहिनी फे बल जीते शिव से प्रबल ह|
, ,्ओीरन कौ कहा बात तात सब विश्व के जे ते ते अज मोहे रहे ताहि ते अचल है ।
| রি 4 र एसे भन सेन जिहि सैन आगे मनँ तलँ सर पांच छूटें जाहि छूटे छलबल है |
রর ॥ हन सदन ताते मयो अभिराम, नाम तिन्दौ वस किये जिन्हीं ताही ते सुबल है ॥११ ॥ |
ऐसे श्री सुबल पाय तिन को सहाय हियों भरयौ चाप भाय र्यौ नेक न विचार ই।
रहं अगाहि जादी ङृष्ण के विभूति से श्री गौरलीला सुधातिधु निपट अपार है॥
ताके कोड बीच धियौ चाहे तट बीच टाड़ौ मो सों नीच जीव जाहि नाहिं अधिकार है |
मेरी अमिलाप-और नाम निज दोऊ एई करि हौ सफल अब परेंगी सम्हार है॥१२॥
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