टैगोर का साहित्य - दर्शन | Taigore Ka Sahitya-darshan
श्रेणी : निबंध / Essay, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.38 MB
कुल पष्ठ :
144
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about राधेश्याम पुरोहित - Radheyshyam Purohit
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प् जमेऊ लेंगे तो ब्राह्मण सभा उनका जनेऊ छीनेगी ही थही घटना खमाज में सबसे बड़ी है । अतः कवियों ने इसे यदि श्रपनी रचना में स्थान नहीं दिया तो समभना होगा कि वास्तवता के बारे में उनकी धारणा क्ीखण है । यह सोच कर मेंने चिल्ला जनेऊ-संहार-काव्य । इसका वस्तु- पिण्ड तौल में कम नहीं हुम्रा किन्तु हाय रे सरस्वती ने श्रपना श्रासन बस्तुपिण्ड पर रखा है या पद्म पर इस हष्टान्त के देने का एक कारण है । विचारकों के मतानुसार वास्तवता क्या है यह में थोड़ा-बहुत समभ चुका हूं । मेरे विरुद्ध एक फरियादी ने कहा है कि मेरी सारी रचनाश्रों में वास्तवता का उपकरण यदि कहीं एकत्र हुम्रा है तो गोरा उपन्यास में । गोरा उपन्यास में कौन-सी वस्तु है या नहीं है यह उस उपन्यास का लेखक भी थोड़ा बहुत जानता है । लोगों के मु ह से सुना प्रचिलित हिन्दुत्व की बहुत भ्रच्छी व्याख्या इसमें की गई है । इसी से श्रन्दाज किया है कि वही बास्तवता का एक लक्षण है । वत्तेंमान में कई कारणों से हिन्दू श्रपने हिन्दुत्व को लेकर भीषरण रूप से प्रतिक्रियाशील हो उठे हें । दस विषय में उनके मनकी श्रवस्था सरल नहीं है । विरव-रचना में यह हिन्दुत्व ही विधाता के हाथ की भ्रधान सृष्टि है श्रौर इसकी सृष्टि में विधाता ने श्रपनी सारी शक्ति लगा दीहै। यही हम लोगों का नारा है । साहित्य में वारतवता को जब तोला जाता है तो यह नारा ही बटखरे का काम करता है। कालिदास को हम अच्छा कहते हैं बयोंकि उनके काब्य में हिन्दुत्व है । बंकिमचन्द्र को हम श्रच्छा कहते हैं क्योंकि पर्ति के प्रति हिन्द रमणी का जो रूप हिन्दू-दारत्र सम्मत है वह उनकी नायिकाओ्ों में मिलता है । दूसरे देशों में भी ऐसा होता है । इंग्लेंड में जब इम्पीरियलिज्म का बुखार हर घण्टे बढ़ रहा था तो एक दल के भंगरेज कवियों के काव्य मेंयह रस वंश्गे-वास्तवता प्रलाप कर रही थी ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...