निराला रचनावली (भाग-6) | Nirala Rachanavali [ Part - 6 ]

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इसलिए इतना छोड़कर इतना ग्रहृण किया जाय । युवको को श्रामूल परिवर्तेन चाहिए, जहाँ सब कुछ अपना ही है, जहाँ अपनी ही प्रतिभा का चमत्कार है, अपने ही हाथों की कारीगरी है, श्रपने ही ग्रादमियों की पावन्दी है, अपने ही कत्‌ त्व वी प्रधीनता है, जहाँ परावलम्बन किसी बात में नहीं । यही इस समय अधिकांश देश-सेवकों की राय है ।” 1930 ई. के झारम्भ में लाहौर में पं. जवाहरलाल नेहरू के सभापतित्व में कांग्रेस बा भ्रधिवेशन सम्पन्न हुआ । उसके पहले निराला ने 'सुधा” में “राष्ट्र की युवक-शक्ति' शीर्पक टिप्पणी लिखी भर झाशा का केन्द्र युवक-समुदाय को जो कि स्वाधीनता-संग्राम का महत्त्वपूर्ण दस्ता था, बतलाया : “कांग्रेस नजदीक है । इस कांग्रेस की वागडोर युवकों के हृदय-समाट्‌ प. जवाहरलालजी के হাস মই अबकी ही भारत के भाग्य का श्रभीष्सित निर्णय हो गा। इसके लिए भारत की युवक शक्ति को हर तरह से कार्य करने के लिए तेयार रहना चाहिए। श्रसहयोग आन्दोलन के वाद ऐसी झआणा झौर कभी नही की गयी | इधर राजनीतिक मामलों मे जो विष्जव हुए है, जैसी घर-पकड़ हुई है, उससे भी हमारी युवक-शवित का चेतन-प्रवाह कद्ध तीव्र हो गया है 1 देण की भ्राजा कैः सावन देश के युवक ही है 1 फिर उन्होंने समभौतावादी-सुधा रवादी नेताशों की आलोचना की श्रौर अग्रेजों की घोसे से भरी तथा फूट डालनेवाली नीति से झगाह किया : “जिस स्वाधिकार शासन के अंगूर के गुच्छे के लिए देश के नेता ललचाए हुए है, वह बहुत ऊंची डाल पर, उनकी पहुंच के बाहर लटकता हुआ देख पड रहा है। बड़े लाट साहब की घोषणा में ब्रिटिश-गवर्नंमेट की तरफ से भारत के राजनीतिक भ्रधिकारों की कोई घोषणा नही है, वल्कि वहाँ एक चाल-सी है। वह यह कि घोषणा के वहाने भ्रनेक राजनीतिक दलों को मिलाकर मतभेद करा दिया जाय । वम्बई के जिन्‍ना और और जयकर की घोषणा मे यही सम्देह प्रवल हो गया है । हमारे देश में ऐसे मत बालो की कमी नहीं, जो कृपा-दृष्टि के ही भिक्षुक है,जरा-सी मुसकिराहट पाने पर ही कुत्ते व” तरह विघलकर दुम हिलाने लगते और उसे ही अपने दिल मे स्व॒राज-युख >. भते हैं ।” अधिवेशन की पूर्व-सन्ध्या मे उन्होने 'काग्रेस का रगमच' शीर्षक टिप्पणी लिखी श्रौर उस राजनीतिक दल कै प्रति भ्रपनी सहानुभूति व्यक्त की, जो “कांग्रेस की वर्तमान प्रतीक्षा-नीति के विलकुत विरुद्ध/ था और चाहता था कि कलकत्ता-काग्रेसवाले प्रस्ताव को ही कार्य मे परिणत किया जाय, और पूर्ण- स्वतन्त्रता की घोषणा कर दी जाय।” दूसरा दल उन लोगो का था, “जो विश्वास करते है कि प्रस्तावित गोलमेज कान्फरेष के श्रधिवेशन ग्रौर निश्चयो की प्रतीक्षा करना ही कांग्रेस के लिए अधिक हितकर होगा ।”” उसके वाद निराला लिखते हैं, “देश के बूढे मेताग्रों श्रौर मध्यश्रेणी के राजनीतिज्नों की बहुलता के फारण इस दन का प्रावल्य भी कम नही है । ग्रधिकत र श्राशा की जा रही है कि कांग्रेस के रंपमच पर इस दल की ही विजय होगी । यदि कही सरकार ने नेताग्रों के घोषणा-पत्र की शर्ते मान ली, या राजनीतिक कैदियों के छोड़ने की हामी भर ली, तब तो इस दल की विजय विलकुल निश्चित ही है। महात्मा गाँधी और *पण्डित मौतीलालजी जैसे पुराने राजनीतिज्ञों की शतरंज की चाले उस समय देश के युवको और उनके हृदय-सम्राट जवाहरलाल को खूब ही छका डालेंगी । पूर्ण स्वतन्त्रता के पक्षपाती नौजवानों को उस समय एक कठिन परिस्थिति का सामना करना पडेगा।” इसमे एक वात खासतौर से ध्यान देने योग्य है--कांग्रेस के “भीतर मध्यश्रेणी के राजनीतिज्ञों का बहुमत । निराला के सामने यह बात अच्छी निराला रचनावली-6 | 15




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