आधुनिक विश्व में वैचारिक संघर्ष | Aadhunik Vishv Mai Vaicharik Shangarsh
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
328
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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पर ऐतिहासिक रूप से सम्बद्ध है और दोनों साथ मिलकर हमारे युग की संक्रमण
की प्रकृति को सुनिश्चित करते है ।
एक सामाजिक-आ्िक संरचना से दूसरी में संक्रमण बिना संघर्ष और पीड़ा
के नही हौ सकता क्योकि यह् केवल उत्पादन की आधिक पद्धति के स्थान पर दूसरी
का स्थापित होना नही है अपितु एक महान् सामाजिक भौर आत्मिक क्रान्ति भी है ।
इस प्रकार, पुरातन भौर नवीन के वोच, मरणासन्न भोर उदौयमान के बीच मुकाबला
अपरिहायें है। और यही है जो अपने क्रम में वैचारिक संघवं की उत्तेजना को--
विरोधी विश्व दृष्टिकीणों के बीच, दार्शनिक दृष्टियों के बीच और भआत्मिक मूल्यों
की व्यवस्थाओं के बीच प्रतिस्पर्धा को-+तीत्र करता है। इसी लिए वर्तमान युग अन्य
किसी भी सक्रमणकालीनयुग से भी भधिक वैचारिक संघर्ष भे भरा-पूरा है
क्योकि मौलिक सामाजिक उद्भेद होने को है, न केवल पुरानी पूँजीवादी राज-
नीतिक-आिक व्यवस्था छिन्म-भिन्न हो रही है अपितु इसकी मानसिकता के प्रति-
मान भी नष्ट हो रहे हैं। जनगण के मस्तिष्कों में एक क्रान्ति, विचारों का संघर्ष,
प्रगति पर है। बड़े परिश्रम के साथ नया समाज जन्म ले रहा है; जैसाकि लेनिन ने
इसके सम्बन्ध में कहा था--“पह आश्चये की बात नही है कि यह विश्व तैयार
शुदा माल की तरह अस्तित्व मे नही आता। जुपिटर के सिर से जैसे मिनर्वा निकला
था उस प्रकार नही आता ।””
इतिहास में इस प्रकार का कोई दूसरा युग नही देखने मे आगा जिसमे राष्ट्रीय
और अत्तर्राष्ट्रीय संकटों का ऐसा सकेन्द्रण हो, इतनी अधिक संख्या मे जटिल कार्य
भार सामने आये हो और उनका इस प्रकार की अन्तविरीधी उलझनो से भर दिया
गया हो जैसाकि बीसवी शताब्दी मे। सामाजिक न्याय मौर समान अधिकारके
लिए शोपित वर्गो के युगो से चले आ रहे संघर्य मे बहुत-सी “शाश्वत” समस्याओं
का समाधान अब राप्ट्रो के व्यवहार में प्राप्त हो गया है जिन्होते समाजवादी रूपा-
न्तरण का मार्ग स्वीकार किया ই।
प्रतिदिन जीवन निरन्तर नयी मांगें सामने लाता है ! पटले कभी भी मानव
सभाज के समक्ष उसके अपने अस्तित्व की समस्या इतने निकट रूप से उपस्थित
नही हुई उदाहरण के लिए, यदि पहले कभी जनगण किसी अलौकिक शवित के
हाथों विश्व के अन्तर्भासिक विनाश की कल्पना करते थे तो अब पृथ्वी पर विद्यमान
प्रत्येक जीवितं वस्तु का विनाश स्वयं उनके अपने ही कार्यो के फलस्वरूप आत्म-
घाती आणविक सवेनाश के रूप मे सामने आ सकता है। मानववंश के सदस्यों ने
पहले कभी भी इतने स्पष्ट रूप से अनुभव नही किया होगा कि थे सब उसी नाव में
1. दी० आई० लैनिन “अमरीका के मजदूरों के नाम पत्च/ संकलित रचनाएं खण्ड 28
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