प्रतिनिधि रचनाएँ | Pratinidhi Rachnaye

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Pratinidhi Rachnaye by शम्भूनाथ सिंह - Shambhunath Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अतिनिधि रचनाएँ ली ठन-गति चला जा रहा हूं | न इस राह का आदि मैं जानता हूँ, न इस राह का अन्त म मानता ह+ दिर पन्य क एक पटिवानता हं नही जानता छत रहा पथ को मैं स्‍्वय पय से या छुला जा रहा हूं! घला जा रहा हूं ! नही है मुक्के ध्यान जीवन मरण वा नही ज्ञान है तम वण और तन फा मुझे एक्टी ज्ञान है बम जलन का ? नही ज्ञात, मर जल रहा आज भुभम स्वय या कि मझ म जला जा रहा हूँ चता जा रहा हूं विराघार ক যাবি साधार ह मै प यही संग रहा दम, निरावार हूं मैं মহা जानता, ढल रहा झु-य मुभमे स्वय शून्य मेया दलाजा रहा हू । चला जा रटाह] “ঢাাভাছ? १९४३




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