जयपुर की संस्कृत साहित्य को देन (1835-1965) | Jaipur Ki Sanskrit Sahitya Ko Den (1835-1965)

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Jaipur Ki Sanskrit Sahitya Ko Den (1835-1965) by डॉ. प्रभाकर शास्त्री - Dr. Prabhakar Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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परिचय खण्ड (प्रथम अध्याय) ও ----------~----~------~------~--~-------------- महाराजा मनि प्रथम का वर्णन-- “यत्रालवद भूषक लावतंस: पृथ्वी-नृपों नाम गुराप्रदीपः । तस्मादभूद्‌_ भारहमल्लभूप-सद्धसंकर्माजितपुण्पपुझ्ज जन्नेःय तस्नाद्‌ भगवन्तदासः प्रचण्डदोरदण्डजितारित्तघः। तस्नादभ्‌त्‌ स निष्णुः कृतविष्मु वाक्यो जातो जयायस्य महीतलैस्य ॥ जाते जगत्यां कछवाहवंशे राधाधवाराधनपुतपारों । दिह्मण्डल साथुमनस्तदानीं घाले स्फ्रत्त जसि सुप्रसन्नम्‌ ॥ मानेन सिहो भवितेति नूनम्‌ अ्रवेक्ष्य स क्षोसिगिपतिः कृतज्ञः । नाम्ना रिपुतव्रात-मयङ्करोए श्रीमार्नासहं तनय॑ चकार ॥” महाराज मानसिह के समय रचित अ्रन्य रचनाओ्ों का सांकेतिक रूप इस प्रकार श्रभिव्यक्त किया जा सक्ता है- ह क्र. रचना-नाम लेखक विषय विवरण ८; महाराजकोर अज्ञात पौराणिक रचना श्रप्ाप्त २. रागचन्द्रोदय पुण्डरीक विद्वुल ब्राह्मण! ९ संगीत प्राप्त डे. रागनारायर मा নী संगीत प्राप्त ४. रागमाला টু হা सगीत प्राप्त ५. राग मंजरी र ५३ सगीत प्राप्त ६. नतंन निर्णय 0 प দি नृत्य श्रप्राप्त न इूती प्रकाश 27 2 2) कामशास्त्र श्रप्राप्त ध पत्र-प्रशस्ति दलपतराजः 7 प्रकीर्णक अप्राप्त ६. यवन परिचय दलपतराज प्रकी णंक সালে इनके पुत्र महाराजा भावसिह के समय रुद्रकवि द्वारा लिखा गया ““भाव-विलास'' नामक काव्य, काव्यमाला सीरिज के द्वितीय गुच्छक में प्रकाशित हो चुका है इनके पिताका नाम विद्याविलास था तथा 'न्यायवाचस्पति' की उपाधि थी । यह मुक्तक काव्य है । इनकी श्रन्‍्य क्ृतियां जो प्राप्त होती है, अनूप संस्क्रृत पुस्तकालय, बीकानेर में सुरक्षित हैं, परन्तु बह कहना कठिन है कि ये सारी रचनायें झ्रामेर में ही लिखी गई हैं, क्योंकि उनमें श्राद्योपान्त कहीं भी ऐसा संकेत नहीं मिलता । थे रचनायें आराख्यातवाद (न्याब०) झ्ालोकसंग्रह (आलोक टीका), तत्त्व-चिन्तामरि परीक्षा-प्रत्यक्ष, अनुमान व गुण खण्ड, किरणावली परीक्षा (उदयनाचार्य) टीका, किरणावली प्रकाश प्रादि हूं | एम० क्रेप्णामाचारों अ्रमरदूत को भी इनकी ही रचना मानते हैं । मिर्जा राजा जयसिह प्रथम (१६२८-१६६७ ई०) के समय लिखित रचनाओं का उल्लेख इस प्रकार किया जा सकता है| इनमें से अब अधिकांश रचनायें पोथीखाने में उपलब्ध हो गई हैं । इनका विण्नेपगा स्वतन्त्र लेखों से प्रस्तुत किया जायेगा । ৩৩৫ न पा 8 25 न फ्र० रचना-नाम रचनाकार विषय विवरण १, चृहदारण्यक टिप्पणी श्री नित्यानन्दाश्रम बेदिक दर्शन ्रपराप्त २५ घर्म-प्रदीष श्री सुन्दर मिश्र गृहस्थ जीवन के श्रप्राप्त उपकरणों का विवेचन ३. मक्त रत्नावली श्रज्ञात नक्ति विषयक ग्रप्राप्त शिः भक्ति विवृतिं अज्ञात हे! प्रप्राप्त




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